कभी कभी बस मन इतना करता है,अपनों के साथ सरे आम खड़े हो रहने का ,
अपनों का कुछ हक तो पहले भी होता था ,मैं ही उदार होने की कोशिश करता था
कौन सही है या कौन गलत , यह फैसला तो फिर कभी ,अभी अपनों के साथ।
पराये तो पराये ही थे , हैं , रहेंगें कहीं उनके चक्कर में अपने भी छूट गये तो।
अपनों का कुछ हक तो पहले भी होता था ,मैं ही उदार होने की कोशिश करता था
कौन सही है या कौन गलत , यह फैसला तो फिर कभी ,अभी अपनों के साथ।
पराये तो पराये ही थे , हैं , रहेंगें कहीं उनके चक्कर में अपने भी छूट गये तो।
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