क्या हजारों साल पहले जो निरूपित हुआ , पढ़ा-पढ़वाया -लिखा-लिखवाया ,सोचा-समझा गया वहीं जा कर मनुष्य को रूक जाना चाहिये क्योंकि वही सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ अन्तिम विकास का अन्तिम रूप है ?
पिछले हजारो साल की असंख्य पीढ़ियाँ और भावी पीढ़ियाँ क्या किसी काम की नहीँ ?
क्यों मुझे हजारों साल पुराने चरणस्पर्श से मुक्ति या चरणामृतपान से मुक्ति काल में ले जाना चाहते हो ।?
मैंने कौन सा पाप किया है कि मुझे अधम पाप पुँज, महापापी -प्रसिद्ध पातकी घोषित करवाने पर पड़े हो ?
तुम या वह कैसे तारण हार और पाप-पुँज-हारी ,मुक्तिदाता ?
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