Wednesday, 23 September 2015

हजारो साल पुराने ग्यान , विग्यान को फिर से बाद के हजारों साल के नये प्रकाश के आलोक में सुक्ष्म रूप से जाँच लेना,ज़ँचवा लेना, परख लेना, पुनःमुल्यांकन कर लेना, करवा लेना ; आवश्यक हो तो उसे संशोधित- परिवर्धित कर लेना ही उचित होगा.
खामखाह अनुचित भावना में विकास को बाधित करना उचित तो नहीं ही कहा जायेगा.
समय -परिस्थिति एवं पुनः विचार करने पर जो अनुचित प्रतीत हो, उससे मोह वश बँधे रहना,अथवा भय वश उसका त्याग नहीं करना, अथवा गलत एवं अनुचित जानते हुए भी उसे गलत कहने और मानने का साहस नहीं जुटाना प्रशंसनीय तो नहीं ही होगा.

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