शस्य श्यामला धरती , स्वच्छ धूप हवा का वर्णन कर देने से गाँवों की पेय जल समस्या का निदान तौ नहीं हौ जायेगा, गड्ढों में से पशुओं की तरह मुँह लगा कर पानी पीते लोगों को देख कर भी क्या मैं उस दृश्य को भूल जाऊँ
भेड़ों के समुह के बीच बंशी बजाते अपने आप में सिमट कर जी भर रहे गड़ेरिये के भेड़ों के प्रति प्रेम को कितने ही प्रशंसनीय भाव से मैं लिख डालूँ, पर क्या उससे उस गड़ेरियै की पीढ़ी दर पीढ़ी की अभाव ग्रस्त जिन्दगी बदल तो नहीं जायेगी.
क्या गड़ेरिये की सरलता और सहजता वास्तविकता वास्तविक है .
भेड़ों के समुह के बीच बंशी बजाते अपने आप में सिमट कर जी भर रहे गड़ेरिये के भेड़ों के प्रति प्रेम को कितने ही प्रशंसनीय भाव से मैं लिख डालूँ, पर क्या उससे उस गड़ेरियै की पीढ़ी दर पीढ़ी की अभाव ग्रस्त जिन्दगी बदल तो नहीं जायेगी.
क्या गड़ेरिये की सरलता और सहजता वास्तविकता वास्तविक है .
No comments:
Post a Comment