मर्यादा के नाम पर अपने भाव-मनोभाव, अपने अनुभव- अनुमान, अपनी क्रिया-प्रतिक्रिया को रोक-बान्ध कर रखना निश्चय हीे एक पीड़ा है,
- बाँटी -बताई भी नहीं जा सकती,
- इस मर्यादा बन्धन से उपर उठ पाना ही मुक्ति है
- देखें, ससम्मान मु्क्ति कब कैसे
- मुक्त भाव से ही समाज और सभी से मिल कर कुछ बाँटा जा सकता है ,
- मर्यादा मुझे बडप्पन और महानता तो देती है , पर समष्टि को ब्यष्टि से तथा ब्यष्टि को समष्टि से विमुख भी करती है.
- सभी तक स्वतन्त्र रूप से बहते हुए पूर्ण रूपेण पहुँचना ही श्रेयष्कर है, फलदायी है , उपयोगी है, उचित है.
- बाँटी -बताई भी नहीं जा सकती,
- इस मर्यादा बन्धन से उपर उठ पाना ही मुक्ति है
- देखें, ससम्मान मु्क्ति कब कैसे
- मुक्त भाव से ही समाज और सभी से मिल कर कुछ बाँटा जा सकता है ,
- मर्यादा मुझे बडप्पन और महानता तो देती है , पर समष्टि को ब्यष्टि से तथा ब्यष्टि को समष्टि से विमुख भी करती है.
- सभी तक स्वतन्त्र रूप से बहते हुए पूर्ण रूपेण पहुँचना ही श्रेयष्कर है, फलदायी है , उपयोगी है, उचित है.
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