Tuesday, 4 August 2015



आपने ही कुछ ब्यवस्था बनाई , स्वीकार की है, उसका निर्वाह भी तो आप ही करेंगें . आपने कतिपय लोगों को विचार कर अपना मत प्रकाशित करने का अधिकार स्वयं स्वेच्छा से सौंपा था, इस ब्यवस्था को स्वीकार किया था.
ये विचार करते हैं , बार बार विचार करते हैं , प्रत्येक बार अपना मत खुले आम सार्वजनिक करते हैं
जो भी जिस बात को पूछने जाता है , वे विचार करते हैं , खुले आम करते हैं , अन्त तक करते हैं.
ये वे ही लोग हैं जिन्हें आप सबने स्वीकारा है.
अब भ्रम कैसा.
और अन्ततः मानना , न मानना तो आपको है, विवेक-मत के प्रति विद्वेष कैसा.
कहीं तो विश्वास -आस्था रखिये - काम आयेगी, उजड़ ही जाईयेगा तो रह ही क्या जायेगा.

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