Tuesday, 4 August 2015

खुद को कोड़-खान कर अपनी जडो़ं को हवा देता रहता हूँ , उलट-पुलट कर धूप दिखाता रहता हूँ , निरोग -निर्मल रहने में मदद मिलती है 
काट - छाँट कर नई कोपलों का मार्ग प्रशस्त करता हूँ , अनुचित - अनियमित बढ़ाव को दिशा देने का प्रयास करता हूँ ,
- उखाड़ता- रोपता हूँ, खोंटता-चूँटता रहता हूँ कि नई फुनगियाँ निकलती रहे ,
- जम कर कडी़ धूप सेंकता हूँ - गरम होता हूँ , पकता हूँ कि समय पर फल-फूल धारण कर दे सकूँ, 
- ईतमिनान से खड़ा रहता हूँ- धूप-बरसात- जाड़ा -गर्मी, दिन - रात कि जीवन के बाद भी मैं कामयाब रह सकूँ,
- और सबसे ऊपर सबको दिखता रहता हूँ ,
- मेरे चारों ओर कोई बाड़ नहीं है.

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