Saturday, 7 February 2015

विचारक के पास विचार होता है , लेखक के पास लेखकीय कला 
.यदि विचार सम्प्रेषण तक नहीं जाते हैं तो उनका महत्व ही नहीं रह जाता .
लेखक के पास यदि विचार नहीं रहे तो लेखन निष्प्राण हो जाता है ,
पुराने विचारों का वहन करता लेखन नवीनता के अभाव में प्रश्न्गिकता तथा आकर्षण खो देता है 
बाजार के लोभ में फंसा लेखक उपयोगिता तथा स्थायित्व खो देता है . 
विरोध से डरा विचारक न उपयोगी न प्रासंगिक न उपस्थित .
नवीनता को संघर्ष के लिये तैयार रहना ही होगा . संघर्षशील विचार और लेखन ही सफल होते हैं . 
हाँ , संघर्ष में पराजय असम्भव नहीं है - 
संघर्षशील विचार और लेखन को पराजित होने के बाद भी निराशा से बचना ही होगा . 
विरोध और संघर्ष नये का स्वागत करते है - अब जय या पराजय ! दोनों सम्भावित परिणाम हैं .
जिसमे जितना दम उसका उतना जीवन.

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