Thursday, 5 September 2013

अपने भोग से कब तक भागोगे। किया तो भोगना ही पड़ेगा। भोग कर ही मुक्ति हो सकती हे।किया ही पलट कर भोग है। भोग का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं। कार्य- कारण की तरह है भोग।
कभी हम अपना भोगते हैं कभी अपनों का। संपत्ति अपनी हो या अपनों की, यश अपना हो या अपनों का, खुशी अपनी हो या अपनों की, हम उछलते कूदते भोगने के लिये स्वतः उपस्थित हो चलते हैं वैसे ही विपत्ति, अपयश, दुःख सभी स्वतः हमें  या हमारे के पास चले जाते हैं, उन्हें पता है हमारा जन्मदाता किस कुल, वंश _खानदान का है, हमैं किसके पास कब जाना है।

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