Monday, 2 September 2013

ढूँढों , ढूँढ़ो रे बालमा, ढूँढ़ो रे बालमा, ढूँढ़ो रे---,
मेरे बेटे को ढ़ूँढ़ों , बिटिया  ढ़ूँढ़ों,
समधी ढ़ूँढ़ों, समधन  ढ़ूँढ़ों, कोइ किसी को ढ़ूँढ़ों रे।

बेटा भाजै, बिटिया साजै, समधी मगन समधन में,
बेटो म्हरो फँस गयो जी थारी बिटिया के चितवन में

समधि देखै इन्नै बिन्नै, खोज रियो तितली उपवन मे
देख के समधन,गुटरुँगूँ बोले,कुछ कुछ म्हारे भी मन में

ढूँढों , ढूँढ़ो रे बालमा, ढूँढ़ो रे बालमा, ढूँढ़ो रे---

बेटो म्हरो डोल्यो डोल्यो, हो रियो मन में बैचैन रे
समधन म्हारी डोल्यी चालै, इशारा करती शैन रे

म्हारी लुगाई  घर सै भागी, बोली आयो समधी रे
थे संभालो चुल्हो चाकी,म तो आजीज आयी रे।

लटकाई बटुओ, चुनो पोत्यो, खूब लिपिस्टिक लगाई रे
इस्यो समधी काँइ आयो, ले भाज्यो मेरी लुगाई रे।

छोटा, बड़ा,टाबर टीकर, लटका झटका देखै है
मुँह छिपाकर, हँसता जावै,इनै, बिनै ,झाँकै हे। 

सोच म पड़ गयो ,चिन्ता बड़गी,बाकी कइयाँ कटसी रै
समधन जी,  समधी न संभालो, फेर दो म्हारी लुगाई रे  ।

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