Judicial discussion by R . K . Rateria
Monday, 2 September 2013
रहूँ या जाऊँ, किसी को कोइ फर्क नहीं पड़ता। रहोगे या चले जाओगे, तुम्हारी मरजी, न कोई स्वागत करने आयेगा न बाहर भेज देने। किसे पड़ी है तुम्हारी सूध लेने की। फिर तुम कौन से तीसमार खाँ हो या तुम्हारे हाथ में कौन सा अलदीन का चिराग है।
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