प्रियवर,
मेरे बड़े मजे हैं,मैं बड़े इतमिनान से सोता हूँ, सो कर उसी इतमिनान के साथ उठता हूँ। दिन भर अपना काम-काज भी बड़े तसल्लीबख्श तरीके से कर पाता हूँ, लगभग कोई डर -भय नहीं सताता। न कोई चीज इधर-इधर रखने का भय, रख कर भूल जाने का डर, नौकर-चाकर, दाई, अतिथि, रिशतेदारों पर खामखाह हर वक्त नजर रखने के पचड़े से लगभग मुक्त, हर छोटे अन्तराल पर कोई अनजाना भय मुझे नहीं सता पाता, बार बार पूरे घर को खोजी निगाह... से ढ़ूढ़ डालने, खंगालने के आतंक से लगभग मुक्त।
मेरे माता पिता ने मेरा धन मेरे माथे मे रख डाला है, मैं भी आगे भी वही करता हूँ, खुल कर बाँटता हूँ फिर भी घटने का नाम नहीं, इसके लिये मुझे कोई खाता-बही नहीं रखनी पड़ती, कभी कोई ,बैंक रिकान्सिलियेशन स्टेटमेन्ट नहीं बनाना पड़ता, हेरा-फेरी, चोरी -वोरी, तेजी-मंदी, घट-बढ़- फिकर नाट।
परमात्मा, मेरी इस शान्ति को बनाए रखना। मैं नहीं भी चाहूँ तब भी।
फदार्थ का दर्शन, संग्रह यहा तक की विचार भी, सुख देता है या नहीं यह तो मैं नहीं बता सकता पर अशान्ति देता है, भ्रम देता है, नींद उड़ा ले जाता है, चैन खा जाता है।
मेरे बड़े मजे हैं,मैं बड़े इतमिनान से सोता हूँ, सो कर उसी इतमिनान के साथ उठता हूँ। दिन भर अपना काम-काज भी बड़े तसल्लीबख्श तरीके से कर पाता हूँ, लगभग कोई डर -भय नहीं सताता। न कोई चीज इधर-इधर रखने का भय, रख कर भूल जाने का डर, नौकर-चाकर, दाई, अतिथि, रिशतेदारों पर खामखाह हर वक्त नजर रखने के पचड़े से लगभग मुक्त, हर छोटे अन्तराल पर कोई अनजाना भय मुझे नहीं सता पाता, बार बार पूरे घर को खोजी निगाह... से ढ़ूढ़ डालने, खंगालने के आतंक से लगभग मुक्त।
मेरे माता पिता ने मेरा धन मेरे माथे मे रख डाला है, मैं भी आगे भी वही करता हूँ, खुल कर बाँटता हूँ फिर भी घटने का नाम नहीं, इसके लिये मुझे कोई खाता-बही नहीं रखनी पड़ती, कभी कोई ,बैंक रिकान्सिलियेशन स्टेटमेन्ट नहीं बनाना पड़ता, हेरा-फेरी, चोरी -वोरी, तेजी-मंदी, घट-बढ़- फिकर नाट।
परमात्मा, मेरी इस शान्ति को बनाए रखना। मैं नहीं भी चाहूँ तब भी।
फदार्थ का दर्शन, संग्रह यहा तक की विचार भी, सुख देता है या नहीं यह तो मैं नहीं बता सकता पर अशान्ति देता है, भ्रम देता है, नींद उड़ा ले जाता है, चैन खा जाता है।
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