मै,
कई बार अनायास उपेक्षा के शिकार हुआ हूँ, घोर अपमान की स्थिति से दो चार
हुआ हूँ, इनमें से अधिकांश की मैने ने भी उपेक्षा कर डाली है, लगभग भूल सा
गया हूँ,कूछ का विश्लेषण कर अपने ही खिलाफ निष्कर्ष निकाल मन को समझा लिया
हैं,
पर अपनों से मिली उपेक्षा या अपमान या पीड़ा बार बार उमड़ती है, नई पीड़ा दे जाती है, उसे भूला नहीं मैं पाता, तब भी नहीं जब मै स्वय़ं को ही दोषी भी समझ रहा हूँ, अपनी उपेक्षा का कार...ण स्वयं को समझ चुकने के बाद भी मै अपनों से अपनापन और सद्-व्यवहार की ही अपेक्षा कर रहा हूँ- शायद मैंने ही अपनों की उपेक्षा की है, फिर भी मै अपनों से अपनेपन की अपेक्षा कर रहा हूँ- जब इतने मेरे प्रमाद के बाद भी आप सब मुझे अपनापन देते रहते है तब अपनों से मिली उपेक्षा या अपमान या पीड़ा बार बार उमड़ती है, नई पीड़ा दे जाती है क्यों कि मैं उसी के योग्य था-
मै समझ रहा हूँ अपनी ही पीड़ा का कारण
पर आज और अब-
आपकी उपेक्षा नहीं अपका निश्चल प्रेम, आपका दिया स्वाभाविक अपनापन मुझे पच नही रहा है
बस इतना सा ही तो है।
पर अपनों से मिली उपेक्षा या अपमान या पीड़ा बार बार उमड़ती है, नई पीड़ा दे जाती है, उसे भूला नहीं मैं पाता, तब भी नहीं जब मै स्वय़ं को ही दोषी भी समझ रहा हूँ, अपनी उपेक्षा का कार...ण स्वयं को समझ चुकने के बाद भी मै अपनों से अपनापन और सद्-व्यवहार की ही अपेक्षा कर रहा हूँ- शायद मैंने ही अपनों की उपेक्षा की है, फिर भी मै अपनों से अपनेपन की अपेक्षा कर रहा हूँ- जब इतने मेरे प्रमाद के बाद भी आप सब मुझे अपनापन देते रहते है तब अपनों से मिली उपेक्षा या अपमान या पीड़ा बार बार उमड़ती है, नई पीड़ा दे जाती है क्यों कि मैं उसी के योग्य था-
मै समझ रहा हूँ अपनी ही पीड़ा का कारण
पर आज और अब-
आपकी उपेक्षा नहीं अपका निश्चल प्रेम, आपका दिया स्वाभाविक अपनापन मुझे पच नही रहा है
बस इतना सा ही तो है।
No comments:
Post a Comment