जब आँखों ने पहला सपना देखा था बाकी सब कुछ तो बस चंद पर्दे थे बस एक एक कर हटते चले गये। ... ताजमहल तो शाहजँहा की नजरौं मैं कब का बन चुका था,उनके ख्वाबों में बाकी तो सब कुछ,ईँट, गारे की मशक्कत ती ... या पत्थरों का वजन औ कारीगरों की बाजीगरी। हमारी आजादी तो उसी दिन पक्की हो चुकी थी जब एक बच्चा लादे माँ ने ललकारा था बाकी तो सब कुछ हमारा ईमान था जो डूबता तैरता आखिर पूरा पार हो गया। |
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