Monday, 22 April 2013

सपने कितने अपने हैं

सपने कितने अपने हैं
सपने तो आखिर सपने है

प्राण इन्हे देकर जब
जियो इन्हे, तब अपने हैं।

आते जाते मेघ नहीं ये
ये तो निर्मल जल धार है।

ये केवल खेल नहीं
... ये तो जीवन आधार है।

आती जाती दिखती ये
साँसों की माला जौवन है।

सतरंगी भँवरों वाली
सपनों की ज्वाला जीवन है।

शिखर तक अब जाने दो
अपनी साँसों के उच्छ्वासों को।

उससे भी उपर ले जाना है
अपने सपनों के प्रयासों को।

संगम स्वप्न और साँसों का
जीवन तो नर्तन प्रयासों का।

जीवन औ स्वप्न सत्य हुए
खत्म हुआ क्रम अनायासों का।

No comments:

Post a Comment