Tuesday, 27 August 2024

 मित्रों,

 एक फिल्म है "चाइना गेट"।शायद आप सब लोगों ने ये फिल्म देखी होगी। इस फिल्म का एक सीन है, जब जगीरा डाकू अपने पूरे गिरोह के साथ देवदुर्ग गांव पर धावा बोल देता है। जगीरा गांव के बीचों-बीच खड़े होकर गांव के मुखिया को ललकार लगाता है कि वो कल तक जगीरा से जंग जारी रखने की बातें कर रहा था, अगर मुखिया के अंदर जरा सी भी हिम्मत है तो वो सामने आए और उससे मुकाबला करे।


उधर मुखिया हाथ मे एक कुल्हाड़ी लेकर जगीरा से भिड़ना चाहता है लेकिन उसकी पत्नी रोक देती है। इस बीच कुछ गांव वाले भी वहाँ आ जाते हैं और मुखिया को बताते हैं कि डाकुओं ने गांव को चारों तरफ से घेर लिया है। उधर जगीरा बार-बार मुखिया को ललकारता रहता है कि बाहर निकल और मुझसे मुकाबला कर। काफी समय तक जब मुखिया बाहर नहीं निकलता तो जगीरा धमकी देता है कि अगर मुखिया बाहर नहीं निकला तो वो गांव की औरतों और बच्चों को काटना शुरू कर देगा।


इस धमकी को सुनकर मुखिया का खून खौल जाता है और वो कुल्हाड़ी पकड़कर जगीरा के सामने पहुंच जाता है। वह बड़ी हिम्मत दिखाकर जगीरा और उसके साथियों को ललकार लगाता है कि यदि उन्होंने अपनी मां का दूध पिया है तो एक-एक करके मुझसे भिड़ो। यह ललकार सुनकर जगीरा मुखिया की तारीफ करता है "जे बात, इस पूरे गांव में एक ही तो मरद मिला है जो जगीरा से भिड़ने की हिम्मत रखता है। अब लड़ने में मजा आएगा।" इतना कहकर वो अपनी बंदूक छोड़कर घोड़े से उतर जाता है और खंजर निकालकर मुखिया से भिड़ जाता है।


अचानक जगीरा मुखिया से कहता है कि तूने तो अकेले लड़ने की बात कही थी फिर अपने बिटवा को साथ क्यों लाया? जैसे ही मुखिया अपने बेटे को देखने पीछे घूमता है, वहां उसका बेटा नहीं होता। इतनी देर में जगीरा खंजर से गर्दन पर वार करके मुखिया का काम तमाम कर देता है। मुखिया को मारने के बाद जगीरा एक जबरदस्त डायलॉग बोलता है।


"उलटखोपड़िये हमसे भिड़ने की हिम्मत तो जुटा लोगे लेकिन हमारे जैसा कमीनापन कहाँ से लाओगे? मेरे मन को भाया, मैं कुत्ता काट के खाया। लोमड़ी का दूध पीकर पला है ये जगीरा, हमसे ना भिड़ियो।"


जब भी मैं रील लाइफ के इस जगीरा और उसके गिरोह को देखता हूं तो स्वतः ही मेरा ध्यान रियल लाइफ के जगीरा पप्पू  और उसके गिरोह इंडी गठबंधन की तरफ चला जाता है। यह व्यक्ति जगीरा से भी अव्वल दर्जे का कमीना है। जगीरा ने तो केवल बचपन मे ही लोमड़ी का दूध पिया था लेकिन इन मक्कारों के मुंह मे सुबह से शाम तक बस लोमड़ी के ही थन मौजूद होते हैं। आला दर्जे का मक्कार है ये।

बीच बीच में कुछ न कुछ टूलकिट ये लाता ही रहता है जब इसने सारे पैंतरे फेल हो गए तब इसे अहसास हुआ कि जब तक हिनू संगठित रहेगा तब तक सत्ता पाना असंभव है

इसलिए इसने हिनुओं को जातपात में बांटने का तोड़ निकाला है डिवाइड एंड रूल करो का ऐजेंडा चला रहा है

पहले जातिगत जनगणना की बात की अब ये नीइचता की पराकाष्ठा पर पहुंचते हुए हर स्तर पर जात पात की बात करनी शुरू कर दी है

ताजा मामला मिस इंडिया विजेताओं की जातियों का है 


भाजपा चाहे कुछ भी कर ले, अगर नैतिकता के प्रश्नों में उलझी रहेगी तो पप्पू और उसके गिरोह का कुछ भी नहीं उखाड़ पायेगी। और इसे खत्म करने के लिए इससे भी अव्वल दर्जे का कमीनापन और मक्कारी जरूरी है। वरना वो दिन दूर नहीं जब यही पप्पू मीडिया की खब्रांडियों के बलबूते भाजपा और देश का सबसे बड़ा सिरदर्द बनने वाला है। इन चार पांच सालों में यदि इसका बोरिया बिस्तर गोल ना हुआ तो फिर ये नहीं रुकेगा,इतना तय मानकर चलो।

Friday, 23 August 2024

 After four decades of relentless dedication to journalism, guided by a deep commitment to the larger cause of society, I have made the difficult decision to cease writing editorial pieces. The ideals of truth and justice I once upheld seem increasingly irrelevant in a society fractured along narrow caste and religious lines, where the masses are ever-willing to be swayed in any direction by those who exploit division for power. 


Politicians have perfected the art of drawing strength from vote bank politics and divisive agendas, leaving society fractured and vulnerable. Matters are further entrenched by a reservation and quota regime woven into our Constitution with no end in sight—a system that perpetuates division rather than unity. Corruption has metastasized like a cancer, with politicians presiding over a pyramid of pliable bureaucrats whose spines have turned to rubber, bending in any direction to serve their political masters. The entire government machinery and system is driven by the pursuit of money, perks, and comfortable sinecures as a large body of officers have long abandoned any sense of public duty or accountability.


It is with a heavy heart that I withdraw my voice from a discourse increasingly dominated by these corrosive forces. My conscience no longer allows me to engage in a conversation that has become a mere echo chamber of vested interests. The ideals that once inspired this journey have been drowned in the cacophony of short-sighted politics and societal decay.

Wednesday, 21 August 2024

 कृष्ण की  हर बात प्रभावित करने वाली है पर दो बाते मुझे अभिभूत  कर देती है एक  तो उनका अप्रतिम सौन्दर्य उनकी मुरली की तान जिसपर बेबस हैं ब्रज की गोपियाँ उनकी ओर खिंची चली आने को।कोई बंधन स्वीकार नहीं है उन्हे।हजारों हजार गोपियों के साथ उनका नृत्य और उसी समय में राधा जी के साथ उनकी रास लीला सबको लगता कि कृष्ण उन्हीं के साथ है।अलौकिक आनंद देने वाला।दूसरा जब कृष्ण पाण्डवों का दूत बन कर धृतराष्ट्र की राज सभा में पहुंचते है,पाण्डवों के लिए मात्र पाँच गाँव की माँग करते है और इंकार पर युद्ध का

आह्वाहन।कृष्ण धर्म के साथ अधर्म के विरुद्ध खड़े है।तटस्थता के प्रखर विरोधी है कृष्ण।अधर्म के साथ कोई अपना भी खड़ा हो उसके विरुद्ध भी हथियार उठाने की प्रेरणा देते है कृष्ण।धर्म की विजय के लिए युद्ध के नियमों की कभी कभी तिलांजलि देते हुये भी दीखते है कृष्ण।उनमें गजब का वाक्चातुर्य है सबको

पराजित सा करता और मोहता हुआ। ।इस भारत भूमि को एक बार और कृष्ण जरूरत है।

Wednesday, 14 August 2024

 एक सेठ-जी के पास एक ग्राहक कुछ समान लेने के लिए आया। उसने जितने का समान लिया उसमें 10 रूपये कम पड़ गए तो सेठ-जी ने कहा कुछ समान कम कर देता हूँ, हम उधार नहीं देते।


ग्राहक को सेठ-जी की बात बहुत ही बुरी लगी,


बोला कि मेरे घर में तीन-दिन से खाना नहीं बना


मेरा पूरा परिवार भूखा है और आपको रूपयों की पड़ी है।


सेठ-जी ने कहा 5 मिनट रूको, घर से सेठानी को बोलकर भोजन की एक शानदार थाली लगवाकर ले आए और बोले,


पहले भोजन करो तथा जाते समय कुछ भोजन बच्चों के लिए भी ले जाना।


उस व्यक्ति के जाने के बाद जब सेठ-जी के बच्चों ने पूछा पिता जी ये कैसा व्यवहार, 10 रूपये कम पड़ने पर तो


आपने उनका समान कम कर दिया और बाद में भरपेट भोजन तो करवाया ही साथ में और भोजन भी बांध दिया।


आखिर ऐसा क्यों....???


सेठ भी ख़ानदानी था बोला …… बच्चों हमेशा ये सीख याद रखना....


व्यापार करते समय, दया मत करो और


सेवा करते समय, व्यापार मत करो ||

 बहु ,ये मकान तुम्हारी माँ ने दहेज में तो नहीं दिया था ..............

धीरे-धीरे कदमों से चलती हुई मीना जी अपने घर की तरफ बढ़ रही थीं। उन्हें इस तरह लँगड़ाते हुए देखकर पड़ोस में रहने वाली सुजाता जी ने कहा,

"अरे दीदी! क्या हुआ? लगता है आपके घुटनों में दर्द ज्यादा है?"

"हां, उम्र का असर है, दर्द तो होता ही रहता है। दवाइयां लानी थीं इसलिए निकल कर गई थी, वरना घर पर ही आराम कर रही थी।"

"तो आप अकेले क्यों गई थीं दवाई लेने? राजू को ले जातीं।"

सुजाता जी की बात सुनकर मीना जी चुप हो गईं। आखिर कहतीं भी क्या कि बेटा उनके साथ नहीं जाता। पर सुजाता जी को तो उनके घर की सारी बातें पता थीं इसलिए उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा और चुप हो गईं। आखिर बोल-बोलकर क्या किसी के दर्द को कुरेदना।


मीना जी वैसे ही लँगड़ाते हुए अपने घर की तरफ बढ़ गईं। जैसे ही घर में घुसीं, देखा कि उनके कमरे का सामान ऊपर वाले कमरे में शिफ्ट हो रहा था। एक पल के लिए वो तो सोच में पड़ गईं, पर फिर बोलीं,

"अरे, मेरा सामान ऊपर कहाँ शिफ्ट कर रहे हो? मेरा कमरा तो नीचे है ना?"

"है नहीं, था मम्मी जी। हमें उस कमरे की बहुत जरूरत थी। इस कारण से आपका कमरा ऊपर शिफ्ट कर रहे हैं।"

"पर मेरे घुटनों में दर्द रहता है। यूँ सीढ़ियाँ ऊपर-नीचे चढ़ना नहीं कर सकती बार-बार।"

"बाहर घूमने जाने में आपके घुटने में दर्द नहीं होता। ऊपर-नीचे होने में ही दर्द होता है। सब बहाने हैं, रहने दीजिए। आपको ऊपर वाले कमरे में ही जाना पड़ेगा।"

"पर बहू, मैं घूमने नहीं गई थी। मेरी दवाइयां खत्म हो गई थीं। मैं तो अपने घुटनों के लिए दवाई लेने गई थी।"

"देखिए मम्मी जी, मेरी बहन आ रही है। पूरे दो साल का कोर्स है तो दो साल तक वो यही रहेगी और उसे कमरे की जरूरत पड़ेगी इसलिए आपका कमरा खाली कर रहे हैं।"

"अरे, तो उसे ऊपर वाला कमरा दे दो। वो तो जवान है, आराम से ऊपर रह सकती है। मना थोड़ी ना कर रही हूं।"

"मेरी बहन उस छोटे से कमरे में रहेगी? मायके में मेरी भी कोई इज्जत है। और आप मुझे मना करने वाली कौन होती हैं? घर हमारा है। घर का खर्चा हम उठा रहे हैं। हमारा डिसीजन हम किसे कहाँ रखते हैं? ऊपर वाले कमरे से इतनी ही दिक्कत है तो आप बाहर वाले कमरे में रह जाइए। हमें कोई एतराज नहीं है।" बहू नैना ने बड़ी बेरुखी से कहा।


सुनकर मीना जी की आंखों में आंसू आ गए। बेटा राजू सामने ही था लेकिन वह तो बुत बना खड़ा तमाशा देख रहा था। एक बार भी उसने नैना को टोका तक नहीं। और बाहर वाला कमरा? वह तो स्टोर रूम था। मतलब अब मीना जी की ये हैसियत रह गई। बहू कबाड़ की तरह मीना जी को स्टोर रूम में रहने के लिए कह रही थी और नालायक बेटा सामने खड़ा था लेकिन वह कुछ कह नहीं रहा था।


जबसे मीना जी के पति गए हैं तब से बेटा-बहू घर के सर्वेसर्वा बन गए हैं। माना कि घर में खर्चा करते हैं पर इसका मतलब यह नहीं कि मां के स्वाभिमान को ही कुचल दें जबकि मकान अभी भी उन्हीं के नाम था। अपनी बहू की जबान से ज्यादा मीना जी को उनके बेटे की चुप्पी चुभ रही थी। आखिर बर्दाश्त के बाहर हो गया तो वह बोल पड़ीं,

"बहू, जब तुमने मेरा कमरा लिया था ये कहकर कि मम्मी जी हमें बड़े कमरे की जरूरत है, तब मैंने कुछ नहीं कहा। यह सोचकर चुप रह गई थी कि बेटे-बहू को क्या तकलीफ देना। दोनों मेरे अपने ही तो हैं। लेकिन आज, तुम मुझे स्टोर रूम में रहने को कह रही हो।"

"शुक्र मनाइए कि स्टोर रूम में रहने को कह रही हूं, वृद्धा आश्रम में नहीं भेज रही हूँ। एक तो हमारा ही खाती हो, ऊपर से हमें ही सुना रही हो।"

"बस करो बहू। बहुत बोल लिया तुमने। यह घर आज भी मेरा है। तुम यह मकान अपने दहेज में नहीं लाई थी। और हां, चुपचाप अपना कमरा भी खाली करो। मैं अपने कमरे में वापस शिफ्ट हो रही हूं।"

"अच्छा, घर का खर्चा हम कर रहे हैं तो आपकी दो बातें क्यों सुनें?"

"आज के बाद करने की जरूरत नहीं है। अगर इस घर में रहना है तो किराया दो। अन्यथा घर खाली करके चले जाओ। मैं किराएदार रख लूंगी। मेरे घर का खर्च मैं खुद निकाल लूँगी।"

"मम्मी, तुम अपने बेटे को इस घर से निकलने के लिए कह रही हो?"

"वाह बेटा! इतनी देर से तेरी बीवी जब मेरी बेइज्जती किए जा रही थी। मुझे वृद्धाश्रम छोड़कर आने की बात कर रही थी, तब तुझे सुनाई तक नहीं दे रहा था। और मैंने तुम लोगों से किराया देने को क्या कह दिया, तुम्हें सुनाई देने लगा। मुझे कुछ नहीं सुनना। अब तक यही सोचती रही कि काश एक दिन तुम लोग मुझे समझोगे पर वो दिन कभी नहीं आया। शायद मुझे अकेले रहने से डर लगता था। पर अब नहीं, अब यूँ बेइज्जत होकर साथ रहने से अच्छा है स्वाभिमान के साथ अकेली ही रहूँ। अब जो भी निर्णय लेना है फटाफट लो और कमरा खाली करो। बस।"


ये सब सुनकर बेटा-बहू की हालत खराब हो गई। इतनी जल्दी कहां जाएंगे? दोनों फटाफट मां के पैरों में पड़ गए,

"हमें माफ कर दो मम्मी। प्लीज हमारे साथ ऐसा मत करो।" पर मीना जी ने मन पक्का कर लिया था। वे झुकने को तैयार नहीं हुईं। निरादर की दो रोटी से तो स्वाभिमान की एक रोटी भली। और भला काश के इंतजार में जिंदगी क्यों बितानी?

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और आखिरकार राजू और नैना उसी घर में ऊपर वाले दो कमरों में शिफ्ट हुए और आज भी उसका किराया दे रहे हैं। जबकि नीचे का वह एक कमरा किसी और को मीना जी ने किराए पर दे दिया। रही बात नैना की बहन की तो वह हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई कर रही है।

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Sunday, 4 August 2024

 समझदारी ये समझने में है कि पितृसत्ता स्त्रियों में मित्रता को खतम करता है। उसके विपरीत स्त्रियों में ईर्ष्या, प्रतिस्प्रधा व नफरत को बढ़ावा देता है। ये पितृसत्ता की व्यवस्था है।


शादी के बाद लड़कियाँ अपनी स्कूल-कॉलेज की सहेलियों से दूर हो जाती है। कोई कहाँ, कोई कहाँ। विदाई प्रथा व शादी की बंदिशों की वजह से स्त्रियों के जीवन में सहेली जैसा रहता नहीं कुछ।

पितृसत्ता में रिश्ते कुछ इस तरह बने हैं कि मित्रता तो दूर की बात है, रहती है तो सिर्फ ईर्ष्या, प्रतिस्प्रधा व नफरत - 

शादीशुदा सुहागन में विधवा या डिवोर्सी महिला के प्रति हीन भावना व नफरत

घरेलू महिला व कामकाजी महिला में प्रतिस्प्रधा व नफरत

परिवार में सास बहु, नन्द भाभी, देवरानी जेठानी में ईर्ष्या व प्रतिस्प्रधा व नफरत

मॉडर्न-पढ़ी लिखी महिला व देसी-अशिक्षित महिला में ईर्ष्या व नफरत


पितृसत्ता स्त्रियों को आपस में लड़वा कर ज़िंदा है, समझदारी इसे जल्द से जल्द समझने में है। 

#friendship #FriendshipDay

 हरियाणा में एक व्यक्ति बस यात्रा में साथ की सीट पर बैठी लड़की को हाथ लगा लगा कर या कोहनी से दबा दबा कर छेड़े जा रहा था

काफी देर तक तो वह लड़की शर्म लिहाज़ से चुप रही , पर जब लड़का बढ़ता ही गया तो लड़की ने कह ही दिया

न्यूऐं मान जावेगा कै पिट कै मानैगा 🧐🥱

लड़का अनजान सा भोलू बनकर पूछने लगा

🤔🤔🤔 मैने क्या किया

और यह सुनने के तुरंत बाद ही 🙆लड़की ने तडा़तड़ जूती से पांच सात लड़के के मुंह सिर पर धर दीं

और फिर लड़की बोली , अब तो समझ आ गया

या और अच्छी तरह समझाऊं

बस , फिर तुरंत लड़का बिना कुछ बोले चुप चाप चलती बस 🚍🚌🙏 से उतर फौरन निकल लिया

यही ट्रीटमेंट पप्पू की त्वचा को चाहिए, लक्षण तो बिल्कुल वही हैं और लिख लो ये एक बार अच्छे से इसी तरह का मेकअप करवा ले और साधारण कारावास तीन माह गर्मियों में भुगत ले बिहार के किसी कारागार में , तो आवाज नहीं नहीं निकलेगी अगले दस पंद्रह साल या फिर ये राजनीति छोड़ भागेगा