मेरे सीनियर ऐडवोकेट दुधेश्वर बाबू को पता चल गया की आज मर्डर के एक केस को करते हूए मै एक वरीय अधिवक्ता से लगभग लड़ ही गया और बाद में कचहरी के उपद्रवी तत्वों ने राईफ्ल ले मुझे घेर लिया था, धमकी भी दी थी।
उनको पता चला कि यद्यपि घटना को मैं बरदास्त कर ले गया पर अन्दर से डर गया हुँ।
वे सीट पर आये। समझाया। एकाएक दोनो हाथ गरजना मोड मे उठा ललकारने लगे - जाओ, बाजार में कपड़ा बेचो, बर्तन बेचो, हल्दी बेचो, पिद्दी सा फेफ्ड़ा लेकर क्रिमिनल ट्रायल कोर्ट मे वकील नहीं बन सकते। उनकी आँख लाल हो गई। वे मुझे अपने पुत्र से भी अधिक मानते थे। उनके सारे क्रिमिनल ट्रायल केस की देख रेख में ही करता था।
उनका कहा लग गया।
सारा भय हवा हुआ।
एक संकल्प खुद ही पैदा हुआ। मुझे उस संकल्प ने धरती से उपर उठा लिया।
मैं बदल चुका था।