Monday, 28 December 2020

 मेरे सीनियर ऐडवोकेट दुधेश्वर बाबू को पता चल गया की आज मर्डर के एक केस को करते हूए मै एक वरीय अधिवक्ता से लगभग लड़ ही गया और बाद में कचहरी के उपद्रवी तत्वों ने राईफ्ल ले मुझे घेर लिया था, धमकी भी दी थी।

उनको पता चला कि यद्यपि घटना को मैं बरदास्त कर ले गया पर अन्दर से डर गया हुँ।

वे सीट पर आये। समझाया। एकाएक दोनो हाथ गरजना मोड मे उठा ललकारने लगे - जाओ, बाजार में कपड़ा बेचो, बर्तन बेचो, हल्दी बेचो, पिद्दी सा फेफ्ड़ा लेकर क्रिमिनल ट्रायल कोर्ट मे वकील नहीं बन सकते। उनकी आँख लाल हो गई। वे मुझे अपने पुत्र से भी अधिक मानते थे। उनके सारे क्रिमिनल ट्रायल केस की देख रेख में ही करता था।

उनका कहा लग गया।

सारा भय हवा हुआ।

एक संकल्प खुद ही पैदा हुआ। मुझे उस संकल्प ने धरती से उपर उठा लिया।

मैं बदल चुका था।

 इसी प्रश्न को उलट कर पुछे। देने वाले वहाँ तक क्यों' कैसे जाते है? क्या उन्हे गुस्सा तक नहीं आता? क्या उन्हें सजा का डर नहीं लगता?

मेरे कार्य काल मे मैने एक क्रम मे यह पेशकार ऐंड पर 100% रोकने में सफलता पाई। पेशकारों ने मेरी बात 100% मानी।

दो महिनों मे वकीलों के संगठन ने बहुत परेशान हो जाने की बात की। अधिवक्ता लिपिक ने भी बहुत परेशानी की बात की।

बाद में पता चला की पेशकारों की आड़ में बहुत लोग अपना धन्धा चलाते है।

पेशकारों के 10% से इन बिचौलियों का 200% बिल चलता है'।धन्धा चलता रहता है। कचहरी के इस घालमेल का मेग्निफाईड विज्ञापन ही इस परिसर की भीड़ का रहस्य है। एक का 200 प्रचार करो, सब को बदनाम करो और अपना पेट भरो। बदनामी सारी पेशकार के जिम्मे। बाकी सब तो सेवा शुल्क लेते है। सेवक हैं।

पेशकार को तो पता भी नहीं चलता।

पर पेशकार के बारे मे यही सब फैलाना ही होगा ताकि बाकी 99% का ब्यपार चलता रहे।

देखीये, केश के निपटते ही ये दलाल मुँह लटकाये घूमते रहते है।

इनकी डायरी में कितने कब के निपट गये मुकदमे अब भी चलते रहते है और हर बीस एक दिन बाद एक अण्डा देते रहते है। बस पेशकार का नाम चलता रहे। बहुत से मुव्क्किल दो तीन साल से कचहरी आये नहीं' बस वकील,ताईद पेशकार का खर्च भेज रहें हैं।

 इंदिरा जी के समय विपक्ष में पर्याप्त नैतिक बल था, वे सीधे इंदिरा जी की आंख से आँख मिला कर बात कर पाते थे - संख्या बल के आधार पर नहीं, अपने नैतिक बल के आधार पर। उन्हें शासन पक्ष से कोई फेवर, मुरव्वत की कभी जरूरत नहीं थी।इंदिरा उन्हें राजनैतिक आधार पर ही जेल तक पहुँचा पाई हो। सीधे कोई भ्र्ष्टाचार का आरोप इंदिरा जी अपने विरोधियों पर न लगा पाई , न सम्भव था।

मोदी जी को तो दबा, कुचला, भ्रष्टाचार से ढका, रंगा, कचहरी, कोर्ट, वकील, जेल के अंदर बाहर करता विपक्ष मिला जो मोदी या सरकार तो छोड़िये, न्यायाधीशों, अधिकारियों, पुलिस-इनकमटैक्स वालों के बगल में भी खड़े होने में डरते है, बराबरी का ब्यवहार का मनोबल उनके पास नहीं रहा।यह विपक्ष अपनी पोजिसनिंग के लिये मीडिया की चिरौरी करता दिखता है।

यही है इंदिरा और मोदी की तुलना के पैरामीटर।

और भी हो सकते हैं।

 1982 के आस पास की बात है। मैं वकालत के पेशे में प्रवेश का इच्छुक था। जिला मुख्यालय में कस्बे की कचहरी ही उपलबद्ध विकल्प थी। सीनियर खोज रहा था। एक यदुवंशी ५५ एक साल के पी पी थे। देहाती वेशभूषा। राजनैतिक चरित्र। समाजवादी टाईप। अक्खड़। मुंहफट। पर कचहरी में व्यापक स्वीकार्यता थी। प्रांत के नेता, मंत्री आते रहते थे। डी एम, एस पी भी आते रहते, उनको बुलाते रहते। बार, बेंच में भी दब दबा।

उन्होंने बताया कि सरकारी लोग सक्षम लोगों से अपना काम निकलवाने, समुचित सलाह के लिए आपकी बड़ाई करते है। आपको फुलाते है। फूलना मत।

और सरकारी लोगों के आने जाने की धमक से आम आदमी आपसे दूर हो जाएगा , डर जायेगा, आपको भी हाकिम ही समझने लगेगा, अपनी बात डर के मारे कह ही नहीं सकेगा। उन्होंने बताया कि गांव देहात का आदमी साहबी ठाठ से घबराता है कि साहब है न जाने कौन सी बात का बुरा मान कहां फॅसा दे। बहुत डरता है।

उन्होंने साहबी रंगबाजी से दूर रहने को कहा। आम लोगों से तब भी संवाद करते रहने की सलाह दी जब ऐसा करना सम्भव न हो। उन्होंने संवाद के लिए किसी बिचौलिए को बीच में न लाने की बात समझाई।

 लम्बित मुकदमें लाखों की रोजी रोटी का आधार है। कोई भी मुकदमों के निस्तार होने मे ईमानदारी से रुचि नहीं रखता। यहाँ समय समय पर मुकदमों का प्रमोशन होता है। मुकदमे अमीबा की तरह खुद ही अपने न्युक्लीयस का विखंडन कर नये मुकदमे पैदा करते है। अपील, रिवीजन, रिव्यू, इंटरलोकट्री मैटर ये एक ही मुकदमें के बाल बच्चे होते है और स्वतंत्र मुकदमों की शक्ल अख्तियार कर लेते है।

मुकदमे वकील, मुहर्रिर की दुधारू गाय है। मुकदमेबाज का खेल है। कुछ का प्रिय हथियार है। हारे हूए की झूठी उम्मीद है। सरकार के लिये दायित्व और खिलवाड़ है। मुकदमें रक्त बीज है। मुकदमें एक सन्त्रास है।बड़े धनी लोगों का विलास है।मुकदमे एक भार है, दायित्व है जो पीढियों की यात्रा करता है।

मुकदमे कचहरी की तमाम शक्तियो की रखैल है। ये परस्पर संयोग कर इन्हीं शक्तियों के कमाऊ पूत पैदा करते है।

कोई नहीं चाह्ता इनका निस्तार।

न्यायालय का आधार है। न्यायालय के डेटा है। फाईल है।

 अंग्रेजों के द्वारा खड़ा किया गया कचहरी का ढाँचा नेटिव लोगों के दमन की संस्था थी और इससे जुड़े लोग अंग्रेजों की ब्यवस्था के दलाल ?