Thursday, 5 November 2020

 बीजेपी वाले चीन को बाप नहीं समझते। मक्का मदीना, पकिस्तान की रखैल नहीं है। ये अमेरिका, पकिस्तान ही नहीं मालदीव के भी दोस्त है। बीजेपी वाले पाकिस्तानी एटम बम के विज्ञापन नहीं।बी जे पी वाले क्वात्रोची या एंडरसन भक्त नही माँ भारती के भक्त है। ये खानों और रवीशियों को पद्म दान नहीं देते। ये नेशनल हेराल्ड पचावन हार नहीं है। ये बैकोंक मे नाचे नहीं, न ही 2g, कोयला, कॉमनवेल्थ गटकन हार है। ये सेना को भूखे नंगे, बिना हवाई जहाज के सुलावन हार नही है

ये राम मन्दिर बणावण हार, 370 हटावन हार, अफजल वानी सैफुल्लाह तारण हार है इस लिये इन्हें अन्ध भक्त कहा जाता है। इन्हें गर्व है।

बस इस लिये कमिशन खावन हार इन्हें अन्ध भक्त कहते है।आ

 दोषी लगने, दिखने से लेकर दोषी सिद्ध होने, दोषी प्रमाणित होने तक के बीच की यात्रा के लिये जमानत की ब्यवस्था है। पुलिस दोषी दिखने या लगने तक ही है। दोषी ही है, यही इसी अपराध का विधानत: दोषी है यह न्यायालय का काम है। पुलिस का काम दोषी सिद्ध करना, प्रमाणित करना नहीं है। पुलिस को बन्दूक दी गई है। उसे निर्णय का भी अधिकार दे देंगे क्या?

कोर्ट को निर्णय का ही अधिकार है। बन्दूक कोर्ट के पास नहीं है।

 फिल्मों में इशारों में कही बात को समझते तो हम अपने अनुभव से ही है।

5/10/20 % ही तो दिखाया जाता है, फिल्मों में, बाकी 80/90/95% तो समाज स्वयं कल्पना करता है।

गानों में इशारे ही तो है औऱ समाज पूरा दृश्य देखने लगता है। नाचने लगता है, रोने लगता है, सर्वांग उत्तेजित हो अश्लील हरकतें करता है। 90 % तो फ़िल्म वाले कि यात्रा नहीं रहती।

वह तो एक दिशा में कोई तीर छोड़ता है। संकेत भर करता है। बाकी की तो आपकी अपनी यात्रा है। आपकी संस्कार जनित, नीति जनित, उत्तेजना जनित, आदत से प्रभावित, तर्क से तय की गई, अंदाज तो आपने खुद ही लगाया।

वह तीर किस दिशा में छोड़ा गया इसका अंदाज समाज को ही लगाना है।

अब यदि फ़िल्म वाले ने, गाने वाले ने, डायलॉग लिखने वाले ने, कलाकार ने अपने लिखे, बोले, किये, देह यष्टि से आपको ताड़ लिया या आपने 10% मार्ग दिखाने पर बाकी नब्बे % मार्ग तय कर लिया,अपना रास्ता खोज लिया तो मानना चाहिए कि फ़िल्म वाले ने, लिख कर, बोल कर, देह यष्टि से आपको आपका वास्तविक रूप दिखाया।

तो हुई न फ़िल्म, गीत, डायलॉग आपकी तस्वीर और समाज का आईना।

 क्या जिला न्यायालय में हारा हुआ मुकदमा उच्च न्यायालय में जीता जा सकता है? तब जब साक्ष्यों और गवाहों को जिला न्यायालय ने सिरे से नकार दिया हो।

आपराधिक मामलों में उच्च न्यायालय में निम्न न्यायालय के दोष सिद्धि के 67% कमो बेस मामलों में लाभ मिलता ही है। सिविल मामलों में भी 40 प्रतिशत फर्स्ट अपील में और 20 प्रतिशत सेकंड अपील में राहत मिलती है।

ये प्रतिशत में आंकड़े एक आकलन भर ही है, सत्यापित नहीं है, किसी अध्ययन पर नहीं हैं। अनुभव आधारित ब्यक्तिगत स्वतः स्फूर्त आकलन है, वैज्ञानिक नही, अनुभव आधारित है।

उच्च न्यायालय में अपील अवश्य की जानी चाहिए।

जो जहाँ थक गया वहीं हार गया।

न्यायालयों में निर्णय कुश्ती के खेल की तरह है। दांव पेंच, सामने वाले कि ट्रेनिंग, प्रत्युतपन्नमति, क्रिया-प्रतिक्रिया, क्षमता, सजगता, स्टेमिना, ताकत, निर्णायक तिथि को उपलब्ध साधन, सहयोग, संयोग पर निर्भर करता है।