E Tech is reshaping Judicial world opening all around Doors/ Windows which were earlier closed or opaquelly panelled.
Thursday, 1 February 2018
2019 election may be between BJP on one side and Shivsena or Congress championing the Same cause on other tone, and in this scenario minoritism may be overlooked or there may be acute bitterness between the voters which may be really disgusting. But I am confident, we are mature and stout and cannot be easily destroyed or we the people are capable of handling all that comes.
सरकारी नौकरी एक को, बाकी का १०० का परिवार तो उसी हलवाई की दुकान से शान से रहता है । लेथ मशीन से लाखों की इज्जत के साथ जीवन। करोड़ों सैल्फ इम्पलाइड सरकारी नौकरी तरफ देखते तक नहीं ।चपरासी, सीपाही, आर्मी की नौकरी से कोई देश समृद्ध नहीं होता । कलम घिस्सू मेरे जैसे से देश नहीं चलता। देश चलता है किसान, गौपालक, कारीगर ,ब्यापारी, उद्योगपति, गृहिणी, से ।अनन्त घर बीना नक्शे के बने, केवल नक्शे से कोई पुल, महल, घर नहीं बने। केवल प्रोजेक्ट रिपोर्ट से फैक्टरी नहीं बनती । किसी को प्रोजेक्ट ,फैक्टरी का खतरा ओढ़ना होता है।
सरकारी नौकरी एक को, बाकी का १०० का परिवार तो उसी हलवाई की दुकान से शान से रहता है । लेथ मशीन से लाखों की इज्जत के साथ जीवन। करोड़ों सैल्फ इम्पलाइड सरकारी नौकरी तरफ देखते तक नहीं ।चपरासी, सीपाही, आर्मी की नौकरी से कोई देश समृद्ध नहीं होता । कलम घिस्सू मेरे जैसे से देश नहीं चलता। देश चलता है किसान, गौपालक, कारीगर ,ब्यापारी, उद्योगपति, गृहिणी, से ।अनन्त घर बीना नक्शे के बने, केवल नक्शे से कोई पुल, महल, घर नहीं बने। केवल प्रोजेक्ट रिपोर्ट से फैक्टरी नहीं बनती । किसी को प्रोजेक्ट ,फैक्टरी का खतरा ओढ़ना होता है।
अंग्रेजों ने भारतीय स्वावलंबी ब्यवस्था नष्ट की, हमारे ग्रामीण कारीगरों के हाथ तक कटवा दिये।
मालिक कारीगरों को नौकर बनने को विवश किया।
किसानों को नील पैदा करने को विवश किया । गांधी जी ने इसका विरोध किया ।ग्राम स्वराज्य समझाया ।
अंग्रेजों ने समझ लिया कि भारतीयों को और नौकर बना कर नहीं रखा जा सकेगा । उन्होंने अपनी फैक्ट्रियाँ स्थानीय लोगों को बेचना शुरू किया ।
गाँधीजी ने इसका विरोध करने की चेष्टा की।
फलस्वरूप अंग्रेजों ने और अंग्रेजों के एजेन्ट ब्यापारियों ने काँग्रेसी लोगों से समझ बढाई जिससे गाँधी निराश हुए और अंग्रेजों के जाने की संभावना देख उन्होंने काँग्रेस, जो अब फैक्ट्रीलौबी की तरह काम करने लगी थी, को भंग कर देने का भी सुझाव दे डाला था।
ईसी आर्थिक विभेद वाली पृष्ठभूमि में भारत से अंग्रेज गये।
मालिक कारीगरों को नौकर बनने को विवश किया।
किसानों को नील पैदा करने को विवश किया । गांधी जी ने इसका विरोध किया ।ग्राम स्वराज्य समझाया ।
अंग्रेजों ने समझ लिया कि भारतीयों को और नौकर बना कर नहीं रखा जा सकेगा । उन्होंने अपनी फैक्ट्रियाँ स्थानीय लोगों को बेचना शुरू किया ।
गाँधीजी ने इसका विरोध करने की चेष्टा की।
फलस्वरूप अंग्रेजों ने और अंग्रेजों के एजेन्ट ब्यापारियों ने काँग्रेसी लोगों से समझ बढाई जिससे गाँधी निराश हुए और अंग्रेजों के जाने की संभावना देख उन्होंने काँग्रेस, जो अब फैक्ट्रीलौबी की तरह काम करने लगी थी, को भंग कर देने का भी सुझाव दे डाला था।
ईसी आर्थिक विभेद वाली पृष्ठभूमि में भारत से अंग्रेज गये।
हमने न्याय को अधिवक्ता की बहस करने की क्षमता, हमारी फीस देने की क्षमता और जज साहबान के ब्यक्तिगत विवेक, मान्यता और मूड के अधीन बना दिया।
हमने न्याय को अन्तहीन अंधी गली में मिलने वाला फल बना डाला। जो पहले थक गया वह हार गया।
But than , whether courts are like debate halls where advocates can be hired to argue till any one of the hirer is exhausted and rendered penniless ?
And should judges judge the inter se quality of arguments of advocates ready to be hired by any body for any sort of cause ?
Should justice depend on the size of purse of the litigant and capacity to hire one after another advocate or sets of advocates ?
हमने न्याय को अन्तहीन अंधी गली में मिलने वाला फल बना डाला। जो पहले थक गया वह हार गया।
But than , whether courts are like debate halls where advocates can be hired to argue till any one of the hirer is exhausted and rendered penniless ?
And should judges judge the inter se quality of arguments of advocates ready to be hired by any body for any sort of cause ?
Should justice depend on the size of purse of the litigant and capacity to hire one after another advocate or sets of advocates ?
सन 1994 का समय था। दस साल उम्र का अधिवक्ता हो चला था । एक सिविल टाईटिल सूट में WS ड्राफ्ट करने का ब्रीफ मिला । मैंने Plaint पढ़ा और क्लाईंट को आश्वस्त किया कि मुकदमा ही खारिज हो सकेगा। प्रथम सबजज के सामने हाजिर हुआ। मुझसे पूछा गया ह्वेयर इज WS । मैंने बताया जरूरी ही नहीं क्यों कि मुकदमा आप आज ही खारिज कर देंगें। उन्होंने आश्चर्य से देखा। मैंने अनुरोध किया की Plaint का अमुक पारा पढ़ लें ।उन्होंने पढ़ा। Plaintiff के वकील को बुलाया गया 2 मिनट की सुनवाई। मुकदमा खारिज ।
मैं लहराते हुए विजयी भाव से अपनी टेबल पर आया।
थोड़ी देर में देखा कि Plaintiff के वकील जो सबसे सीनीयर सिविल के वकील मिने जाते थे के पास कई सिनीयर वकील इकट्ठा हो चले।
थोड़ी ही देर बाद उसी टेबल के एक वकील साहब बुलाने आये । मैं गया ।
मुझे समझाया गया कि मुकदमा नहीं चलेगा, खारिज हो जायेगा यह बात Plaint दाखिल करते समय भी पता थी पर मुकदमा दाखिल किया गया जिससे मुझे भी ब्रीफ मिला। यह मुकदमा अन्ततः खारिज ही होता पर दस सालों तक दो तीन वकीलों का ब्रीफ तो रहता ही। मुझसे पूछा गया कि पहली ही तारिख पर मुकदमा खारिज करवा मुझे क्या मिला।दोनो तरफ का एक इंगेजमेंट कम ही हुआ।
मैं अवाक् रह गया।
मैं लहराते हुए विजयी भाव से अपनी टेबल पर आया।
थोड़ी देर में देखा कि Plaintiff के वकील जो सबसे सीनीयर सिविल के वकील मिने जाते थे के पास कई सिनीयर वकील इकट्ठा हो चले।
थोड़ी ही देर बाद उसी टेबल के एक वकील साहब बुलाने आये । मैं गया ।
मुझे समझाया गया कि मुकदमा नहीं चलेगा, खारिज हो जायेगा यह बात Plaint दाखिल करते समय भी पता थी पर मुकदमा दाखिल किया गया जिससे मुझे भी ब्रीफ मिला। यह मुकदमा अन्ततः खारिज ही होता पर दस सालों तक दो तीन वकीलों का ब्रीफ तो रहता ही। मुझसे पूछा गया कि पहली ही तारिख पर मुकदमा खारिज करवा मुझे क्या मिला।दोनो तरफ का एक इंगेजमेंट कम ही हुआ।
मैं अवाक् रह गया।
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