आपको तय करना है - आप दया के पात्र है , बनेंगें , या करुणा के या इर्ष्या के, अथवा श्रद्धा के ,
कौन सा प्रेम , कैसा प्रेम ,किसका प्रेम - यह आपको तय करना है
श्रद्धा के पात्र बनने का रास्ता कठिन तो है ही ,अनजान , दुर्गम भी ,
पर न जाने कितने हमारे आप से पहले कैसे कैसे विकट रास्तों से होकर श्रद्धा के शिखर पुरुष बन चुके है , नित नये श्रद्धा -मानक सामने आ रहे हैं - हम आप खुद ब खुद उनका स्मरण मात्र कर श्रद्धा से अभिभूत हुए जाते है .
इस दिशा में एक पवित्र लक्ष्य रख कर हम आप भी एक असंभव ही सही यात्रा का प्रयास तो कर ही सकते हैं . असफल ही न होंगे . समाज को कुछ देने की इच्छा रख कर कुछ तो किया ही जा सकता है .जितना बन पड़ेगा उतना करने से भला मुझे कौन रोकेगा .मेरा जितना बूता है मैं उससे क्यों बाज आऊँ .
दीया जलने के पहले अँधेरे को देख कभी डरा है क्या . अँधेरा नहीं भी हारे तब भी दीये को उसकी ताकत भर जल लेने दो मेरे भाई .
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