Wednesday, 20 June 2012

राज्य, राजस्व,राज्य के आय के साधन, राज्य -कर, कराधान प्रणाली, कर संग्रह व्यवस्था, राज्य कर मिमांसा, कर संग्राहक,करदाता, करदेयता, करों के संबंध में राज्य तथा प्रजा अथवा अन्य की मानसिकता, इन सबके पीछे के तर्क, विचार, व्यवहार आदि गंभीर चिंतन के विषय हैं।
मेरी मजबूरी की नुमायश यूं न किजिये,
आपके तिजारत के लिये और भी बहुत कुछ है
मुझे मेरी सिसकियों के साथ जी लेने दें,
उसकी विडियो बनाकर आपको क्या मिलेगा
मुझे रो लेने दें, चिल्लाने दें, जी हलका हो जाने दें,
उसकी औडीयो बनाकर आपको क्या मिलेगा
मेरे भुखे बच्चे, मेरी सूखी काया, वस्त्रहीन,
ऐसी पेन्टिंग बनाकर आपको क्या मिलेगा
मै खड़ी सड़क किनारे, भूखे पेट, लिपस्टिक ,
उन गाड़ियों मे मुझे क्या मिलेगा, दो जून खान
उकड़ू बैठी, जांघे झाँकती, बरतन माँजती मै,
मुझ पर घूर कर ताकते , आपको क्या मिलेगा
घास की टोकरी, हसुआ, अब और छुपाओगे,
मै बुझ चुकी, अब आपको क्या मिलेगा
माँ ने छोटी को बुलाया है, चिप्स बनाने को
ये बहाने बनाकर आपको क्या मिलेगा
आज ही आपके यहाँ भोज था,बहुत झूठन मिली,
झूठन सूखते दिखकार ,आपको क्या मिलेगा
बम्बई की लोकल में मेरे बदन से सटा देह,
फिसलती निगाहें,दिखाकरआपको क्या मिलेगा


आपके तिजारत के लिये और भी बहुत कुछ है
आपके तिजारत के लिये और भी बहुत कुछ है
ऐसी पेन्टिंग बनाकर आपको क्या मिलेगा
ये बहाने बनाकर आपको क्या मिलेगा
फिसलती निगाहें,दिखाकरआपको क्या मिलेगा

Tuesday, 19 June 2012

बीसियों चिट्ठियाँ हर महिने लिखता रहा, एक का भी जबाब नहीं आया।
 कभी मनीआर्डर थोड़े ही मंगाया था।बस मैं अकेले याद कर लिया करता था। हो सकता है उन्होनें मेरा खत पढ़ा ही न हो ।मुझे क्या, मैं तो खत लिखने से बाज आने से रहा। पढ़ें या ना पढ़े, ये उनकी मर्जी । आज नहीं तो कल उन्हे जबाब देना पड़ेगा। नहीं भी देंगें तो क्या मैं पत्र लिखना रोक दूँगा ।
 पत्र मैं अपने मन से लिखता हूँ, अपने मन से, किसी के कहे नहीं।
...र साँझ दीपक जलाता रहा हूँ- बिना किसी नागा। आँधी रही या तूफान, अपनी हथेलियों की ओट किये दीपक को और उसकी रौशनी को संभालता रहा ।
उम्मीद रहती है, आप आयेंगें, कहीं अंधेरे में आपको तकलीफ न हो। आप नहीं आये ।----आप नहीं आये। मैं ईन्तजार करता रहा। ।
हर साँझ दीपक जलाता रहूँगा- बिना किसी नागा।
आप आयेंगें- नहीं भी आये तो क्या। मैं गाँव के बाहर, पीपल के पेड़ के पास दीया लिये खड़ा रहूँगा, अंधकार से लड़ता दीया-अकेले प्रकाश देता दीया। दीया है तो बाती तो होगी ही- नहीं भी है तो ,मैं हूँ न।आपकी राह का अंधेरा मुझे नहीं सुहाता ।
 आप आयेंगें तो मुझे खुशी होगी। पर मैं ड्योढ़ी पर आपके लिये रोज दीया जलाता रहूँगा,रहूँगा,रहूँगा,रहूँगा।

मेरे पास एक ही खिलौना बच गया है। उसे मैंने तूम्हारे लिये रख छोड़ा है। आओ न , खेलो उस खिलौने संग। मैंने आँगन भी साफ कर रखा है।हर बार खाना ठंडा हो जाता है, कोई बात नहीं आज नहीं कल आ जाना।
 मैं इन्तजार करुँगा------
कुछ तो बदलो। बदल तो रहे ही हो। बदले बिना हम सब रह ही नहीं सकते। बदल भी गये ही हो। बस स्वीकार करना है।
जितना जल्दी कर लो, सुखी रहोगे।
नयापन आयेगा ही। मैं पुराना पड़ रहा हूँ, या पड़ जाऊँगा, हो सकता है कुछ पड़ भी गया हूँ।
नये का स्वागत करने में भय कैसा। मैं भी तो नया था।क्या मैंने सब कुछ खत्म कर दिया। यदि नहीं, तो क्यो सोचते हो कि नया आयेगा तो कैसा होगा,क्या होगा।
अभी मैं हूँ, रहूँगा, केवल नये को स्वीकार कर लेने मात्र से मेरा अस्तित्व समाप्त नहीं होगा, नया जो कुछ भी आयेगा वह हम सबको नयापन देगा, उत्साह देगा, उर्जा देगा, नव जीवन देगा । पुराने पड़ जाने से महत्व कम थोड़े हो जाता है।
बस मेरे , आपके पुराने पड़ते जाने के साथ नये की सम्भावना, पदचाप, लक्षण दिखने लगे हैं।

Sunday, 17 June 2012

हद हो गई। समाज चलता गया पर कानून वहीं के वहीं । मूल्य बदल चुके हैं । परिस्थतियों नें स्पष्ट बदलाव है । समय, सोच, , साथ सब कुछ बदल गयें। और हद तो यह है कि कानूनविदों का सोच वही, कम से कम दूसरों के मुकदमों के लिये बहस करते समय या निर्णय करते समय वही आँखों पर पट्टी------ क्यों नहीं भविष्य को देखते ये लोग---क्या इतिहास ही सब कुछ है----- भावी पीढ़ी के लिये हमारे पास देने के लिये भविष्य क्यों नहीं है । क्यों हमें हमारे अनुभवों पर ही अकेले भरोसा हे- क्या हमारे अनुभवों के बाद नये अनुभव होने बंद हो जायेंगें- नई पीढ़ी हमसे अधिक समझदार होगी, यह मानने में आपको या मुझे क्यौं झिझक् होती है । सच मानीये, आप भी अपने से पहले कि पीढ़ियों को नकारते हुए जवान हुए हैं- आपने भी नया बहुत कुछ किया, समाज को दिया, आपने अच्छा किया पर आपसे भी अच्छा आने वाली पीढ़ी करेगी, भरोसा रखिये