मुझे लगता था कि प्रबुद्ध वर्ग में मात्र गिने-चुने परिवार में ही अनुशासनहीनता आई है लेकिन संसद परिसर में घटित कल की घटना यह दर्शाती है कि अनुशासनहीनता अब राष्ट्रीय समस्या बनती जा रही है। किसी भी प्रजातांत्रिक व्यवस्था में कोई व्यक्ति या दल के लिए आवश्यक नही कि वही सरकार बनावे। ऐसी सोंच प्रजातंत्र की नही वल्कि तानाशाह की होती है। यह सही है कि जिस दल ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर भारत को गुलामी से मुक्ति दिलाने हेतु काम किया वह कांग्रेस पार्टी थी। कांग्रेस का सत्याग्रह और आजादी के दीवाने क्रांतिकारियों के क्रांति का संयुक्त प्रतिफल था जिसने अंग्रेजों को भारत छोड़ने हेतु मजबूर किया। लेकिन आजादी के बाद क्रांतिकारियों को कभी पदलोलुप्ता नहीं रही और कांग्रेस पार्टी निर्वाध स्वतंत्र भारत में सरकार बना ली। उस समय कांग्रेसियों को सपने में भी ऐसा विश्वास नही था कि एक दिन कोई दूसरी पार्टी भी सरकार बना सकती है जिस कारण सरकार बनाने का अधिकार कांग्रेस पार्टी सिर्फ अपना समझने लगी थी लेकिन ऐसा हो न सका और धीरे धीरे सरकार गठन का काम कांग्रेस के हाथ से फिसलकर अन्य दलों के हाथ में चली गई जो अब कांग्रेसियों को पच नही रही है और येन-तेन-प्रकारेण सरकार बनाने के लिए वे कार्यरत प्रतिपक्ष को काम नही करने देने के उद्देश्य से तरह तरह के व्यवधान खड़ी करते रहते हैं। फिर भी जब उनकी दाल नही गली तो वे अब उद्दंडता पर उतर गए जिसका प्रमाण कल देखने को मिला। सभी उद्दंडों का यही ध्येय होता है कि वह अपने बाहुबल के सहारे दूसरों का अधिकार हनन करें। यही कारण है कि कल राहुल की अगुवाई में कांग्रेसियों ने प्रतिपक्ष के दो सांसदों को घायल कर दिया तथा एक महिला सांसद के साथ दुर्व्यवहार किया। भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में इस तरह की घटना घटित होना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस तरह किसी उद्दंड को सही मार्ग पर लाने के लिए प्रारंभ में ही उसका हाथ-पांव तोड़ कर सबक सिखाने की आवश्यकता है उसी प्रकार स्वस्थ्य प्रजातांत्रिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए उद्दंड नेतागण एवं उनके दल को चुनाव में मटियामेट करने की आवश्यकता है। भारत की जनता अब जागरूक हो गई है और वह सब जानती है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि जो नेता या दल बाहुबल के सहारे सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं उन्हें भारतीय मतदाता ऐसा सबक सिखाएंगे कि उन्हें अपना बोड़िया-विस्तर बांध कर भारत से पलायन करने हेतु विवश हो जाना पड़ेगा वरना---? ये भारत की पब्लिक है; सब जानती है, दूसरा रास्ता भी अपना सकती है।
"उद्दंडों के लिए बस एक ही सजा,
हाथ-पांव तोड़ कर घर में बिठा।"
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