मुझे तुम याद आ रहे हो
Monday, 30 December 2024
Sunday, 29 December 2024
मुझे मेरा राजीव लौटा दीजिए, मैं लौट जाऊंगी, नहीं लौटा सकते तो मुझे भी इसी मिट्टी में मिल जाने दो: सोनिया गांधी।
ऐसा कहने बाली श्रीमती सोनिया गांधी जी के कार्य-कलापों पर नज़र डालें तो समझ में आ जाता है कि वो वास्तव में किस मिशन पर जुटी रही हैं। रूस के केजीबी एजेंट से लेके सोरोस से सांठगांठ तक की पोल खुल चुकी है
राजीव गांधी की हत्या तक सोनिया की पकड़ सिस्टम पर उतनी मज़बूत नहीं थी।
उसके बाद पीवी नरसिंहराव आ गए जो सोनिया गांधी को नज़र अंदाज़ करके अपना काम करते रहे।
1999 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री रहे और इस दौरान भी सोनिया एक तरह से लाचार रहीं।
लेकिन 2004 में दिल्ली की सत्ता हाथ आते ही सोनिया ने वो मिशन शुरू कर दिया जिसके इंतज़ार में वो तब से थीं, जब से भारत आईं।
2005 में सोनिया गांधी के दबाव में मनमोहन सरकार ने संविधान में 93वां संशोधन किया। इस संशोधन का मतलब था कि सरकार किसी हिंदू के शिक्षा संस्थान को कब्जे में ले सकती है लेकिन अल्पसंख्यकों और हिंदुओं की अनुसूचित जाति और जनजाति के संस्थानों को छू भी नहीं सकती।
दलितों और आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग करने की सोनिया गांधी की ये सबसे बड़ी चाल थी। इसका असर यह हुआ कि किसी हिंदू के लिए शिक्षण संस्थान चलाना बहुत कठिन हो गया। चर्च की सलाह पर ही 2009 में सोनिया ने शिक्षा के अधिकार का कानून बनवाया। इसके जरिए आम शिक्षण संस्थानों में 25 फीसदी गरीब छात्रों को दाखिला देना जरूरी कर दिया गया जबकि दूसरी औऱ अल्पसंख्यक संस्थानों पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। यहां तक कि उन्हें अनुसूचित जाति और जनजातियों को आरक्षण देने से भी छूट दे दी गई।
सोनिया के दांव का घातक असर:
1
.पहले संविधान का 93वां संशोधन और फिर शिक्षा के अधिकार (RTE) के कानून के चलते ईसाई और मुस्लिमों के लिए शैक्षिक संस्थान चलाना बहुत सस्ता हो गया। दूसरी तरफ हिंदुओं के शिक्षण संस्थान बंद होने लगे।*
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लोगों के कई मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज चलते हैं। उनके आगे जब संकट खड़ा हुआ तो उन्होंने लिंगायत को हिंदुओं से अलग धर्म की मान्यता देने की मांग शुरू कर दी।
ऐसी ही मांग साईं भक्त समुदाय से भी उठने लगी। दरअसल ये सोनिया गांधी का दांव था जिससे देखते ही देखते हिंदू धर्म के अलग-अलग समुदाय खुद को अलग धर्म का दर्जा देने की मांग करने लगे।
प्लान तो यहां तक था कि आगे चलकर कबीरपंथी, नाथ संप्रदाय, वैष्णव जैसे समुदायों को भी अलग धर्म की मान्यता देने की मांग को हवा दी जाए। इसी तरह के दांव से आजादी के समय कांग्रेस ने जैन, सिख और बौद्धों को हिंदू धर्म से अलग किया था।
दरअसल 2004 के बाद से सोनिया गांधी के इशारे पर कांग्रेस की सरकारों ने ऐसे कई फ़ैसले लिए जो वास्तव में हिंदू धर्म की रीढ़ पर हमला थे। हैरानी की बात यह रही कि इन सभी में मीडिया ने कांग्रेस को पूरा सहयोग किया।
2
राम सेतु पर हलफनामा:
2007 में कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि चूंकि राम, सीता, हनुमान और वाल्मीकि वगैरह काल्पनिक किरदार हैं इसलिए रामसेतु का कोई धार्मिक महत्व नहीं माना जा सकता है। जब बीजेपी ने इस मामले को जोरशोर से उठाया तब जाकर मनमोहन सरकार को पैर वापस खींचने पड़े।
3
हिंदू आतंकवाद शब्द गढ़ा:
इससे पहले हिंदू के साथ आतंकवाद शब्द कभी इस्तेमाल नहीं होता था। मालेगांव और समझौता ट्रेन धमाकों के बाद कांग्रेस सरकारों ने बहुत गहरी साजिश के तहत हिंदू संगठनों को इस धमाके में लपेटा और यह जताया कि देश में हिंदू आतंकवाद का खतरा मंडरा रहा है। जबकि ऐसा कुछ था ही नहीं। कोर्ट में कांग्रेस की इन साजिशों की धज्जियां उड़ चुकी हैं।
4
सेना में फूट डालने की कोशिश:
सोनिया गांधी के वक्त में भारतीय सेना को जाति और धर्म में बांटने की बड़ी कोशिश हुई थी। तब सच्चर कमेटी की सिफारिश के आधार पर सेना में मुसलमानों पर सर्वे करने की बात कही गई थी।बीजेपी के विरोध के बाद मामला दब गया, लेकिन इसे देश की सेनाओं को तोड़ने की गंभीर कोशिश के तौर पर आज भी देखा जाता है।
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चर्च को सरकारी मदद:
यह बात कम लोगों को पता होगी कि जहां कहीं भी कांग्रेस की सरकार बनती है वहां पर चर्च को सीधे सरकार से आर्थिक मदद पहुंचाई जाती है।इसका खुलासा कर्नाटक में RTI से हुआ था,जहां सिद्धारमैया सरकार ने चर्च को मरम्मत और रखरखाव के नाम पर करोड़ों रुपये बांटे थे।
6
शंकराचार्य को गिरफ्तार कराया:
2004 में कांग्रेस ने सत्ता में आते ही कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को दिवाली की रात गिरफ्तार कराया था।तब इसे तमिलनाडु की तत्कालीन जयललिता सरकार का काम माना गया था। लेकिन बाद में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में इस घटना का ज़िक्र किया, जिससे यह पता चला कि वास्तव में ये खेल केंद्र सरकार की तरफ़ से रचा गया था। शंकराचार्य धर्मांतरण में ईसाई मिशनरियों के लिए रोड़ा बन रहे थ।ेलिहाज़ा कांग्रेस ने उन्हें फँसाया था।
7
केंद्रीय विद्यालय की प्रार्थना पर एतराज़
ये 2019 का मामला है जब एक वकील के ज़रिए केंद्रीय विद्यालयों में होने वाली प्रार्थना के तौर पर ‘असतो मा सदगमय’ को बदलवाने की अर्ज़ी कोर्ट में दाखिल की गई थी।दावा किया जाता है कि इसके पीछे सोनिया गांधी का ही दिमाग़ था। 2014 से पहले अपने कार्यकाल में भी उन्होंने इसकी कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो पाई थीं।
8
दूरदर्शन का लोगो:
दूरदर्शन के लोगो मे से सत्यम शिवम सुंदरम को हटाया मनमोहन सरकार ने किसके इशारों पर, ये भी सभी जानते हैं।
9
FDL- AP और सोरोस से फंड
फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर्स इन एशिया पैसिफिक (एफडीएल-एपी) फाउंडेशन की सह-अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी की पिछली भूमिका, जिसने कथित तौर पर कश्मीर की स्वतंत्रता के पक्ष में विचार साझा किए थे, चिंता का विषय है। इसके अतिरिक्त, पार्टी ने घरेलू मामलों में विदेशी प्रभाव के सबूत के रूप में राजीव गांधी फाउंडेशन और सोरोस से जुड़े संगठनों के बीच साझेदारी की ओर इशारा किया।
सोरोस द्वारा वित्त पोषित ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के उपाध्यक्ष सलिल शेट्टी ने भारत जोड़ो यात्रा में भाग लिया। एक अन्य थ्रेड के माध्यम से, भाजपा ने पहले अमेरिकी विदेश विभाग पर सत्तारूढ़ पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने के एजेंडे के पीछे होने का आरोप लगाया था। ओसीसीआरपी के वित्तपोषण का 50% सीधे अमेरिकी विदेश विभाग से आता है। ओसीसीआरपी ने डीप स्टेट एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक मीडिया टूल के रूप में काम किया है। एक पोस्ट में कहा गया कि डीप स्टेट का स्पष्ट उद्देश्य प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाकर भारत को अस्थिर करना था।
अब समझ आ रहा है भले गांधी खानदान से देश के साथ धोखा अत्याचार किया हो पर गद्दारी उतनी नहीं की जितनी
सोनिया गांधी और राहुल गांधी मिल कर कर रहे है!
यह समय हम सबों के लिए ईमानदारी पूर्वक आत्म निरीक्षण का है कि इस समाप्त होते वर्ष में हम ने क्या किया और अपने कर्मों से क्या पाया और क्या खोया ताकि नए वर्ष को अधिकाधिक अच्छा बनाया जा सके।
मैं जानता हूॅं कि ईमानदार आत्मनिरीक्षण बहुत ही कठिन कार्य है क्योंकि कोई भी व्यक्ति जान-बूझकर गलती नही करता है वल्कि फायदा के लिए अपनी समझ से जो उचित लगता है वहीं कार्य करता है।
बस, ऐसे कार्यों का ही मुल्यांकन करना है।
यह सच है कि यदि अपवाद को छोड़ दें तो मनुष्य स्वभावत: स्वार्थी होता है और अनुचित लाभ के लिए गलत काम कर बैठता है जो देर-सवेर विवाद पैदा कर देता है जिसके परिणामस्वरूप वह तनावग्रस्त हो जाता है तथा जितना वह प्राप्त करता है उससे ज्यादा वह गंवा देता है।
इसलिए मैं हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी अपने सभी रिश्तेदारों और संपर्कियों से आग्रह करता हूॅं कि वे स्थिर मन से बीत रहे पूरे वर्ष में अपने कार्यों का लेखा-जोखा कर नव वर्ष में इस संकल्प के साथ प्रवेश करें कि वे तुक्ष प्राप्ति के लिए कोई अनुचित कार्य नही करेंगे तथा अश्लीलता, उद्दंडता एवं अनुशासनहीनता का त्याग कर खुशहाल जीवन व्यतीत करने का प्रयास करेंगे।
Friday, 20 December 2024
मोदी मोदी मोदी - सारी दुनिया मानो - मोदी जी से परेशान है ... मानो तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो सारा दोष - मोदी जी पर ही डाला जाएगा । सिर्फ राहुल परेशान नहीं है .. अमरीका .. चीन ..पाकिस्तान .. फिलिस्तीन .. जस्टिन ट्रूडो ..जॉर्ज सोरेस .. हमास ..आईएसआई .. खालिस्तानी .. आतंकवादी ..केजरी .. ममता .. अखिलेश ..लालू-भालू .. फारुख .. पूरा विपक्ष परेशान .....
बहुत लंबी लिस्ट है .. गिनती खतम ही नहीं होगी । .. ये आदमी है - या बवाल ..
और तो और ......गमलों में दो - दो करोड की गोभी उगाने वाले होनहार किसान भी परेशान .... मोदी नहीं था ...तो गमलों में भी दो करोड़ की गोभी उग जाती थी । अब वही होनहार गरीब किसान भी काजू-पिस्ता खाकर दिल्ली में सडक पर आंदोलन कर रहा है --
राहुल की थाईलैंड यात्रा बंद .... उनके जीजा का जमीन का कारोबार बंद ...माताजी की गुप्त मेडिकल यात्रा बन्द ...
सेना के जवानों पर पत्थर फेकने वाले परेशान है । कहां तो पत्थर फेकने के 500 रूपए मिलते थे ... अब गोलियां खानी पड रही है ।
पाकिस्तानी आंतकवादी भी आराम से कश्मीर घूमने आ जाते थे । एक बार तो - मुम्बई तक भी आ गए थे । अब हालात यह है कि अज्ञात लोग के निशाने पर खुद आतंकवादी है । उनको अपने ही घर से निकलने के लिए भी सोचना पड रहा है ।
नेहरू जी ने तो समय रहते - अपने हाथ से अपने गले में - मेडल डाल कर अपना सम्मान कर लिया था । भरोसा नहीं था कि - शायद बाद मे सम्मान शायद ना मिले । पर मोदी जी को अब तक 18 विदेशी " सर्वोच्च नागरिक सम्मान " मिल चुके हैं -- अब मोदी जी में पता नहीं सबको क्या दिखता है ??
इससे तो मनमोहन सिंह जी ठीक थे । किसी सम्मान का लालच नहीं था । खुद राहुल भी अगर सम्मान नहीं करें तो भी कुछ नहीं बोलते थे । जो बाहर से राष्ट्राध्यक्ष आते थे , वो भी मनमोहन जी को समझा कर जाते थे ..अब समझाते थे - या धमकाते थे - यह तो वही जाने ।
पाकिस्तान आराम से आतंकवादी भेजकर आंखें दिखाता था । पता था, मौनी बाबा फिर भी शान्ति प्रस्ताव ही भेजेगा । कश्मीर के नौजवानों को सेना पर पत्थर फेकने की आजादी थी । आजादी तो मानो भगतसिंह उनके लिए ही ले कर लाए थे ।
बहुत ही साहसिक फैसला मोदी जी ने लिया - जैसे .....
नोट बंदी भारत में करवा कर और आटे की लाइनें पाकिस्तान में लगवा दी । भारतवासियों को भले ही नोट बंदी समझ में ना आई हो पर पाकिस्तान को तो बहुत अच्छा समझ में आई । आतंकवादियों को पगार देना भारी पड़ने लगा ।
एक बात तो - मेरी समझ के भी बाहर है ।
जैसे यहां के मुसलमानो को मोदी बिल्कुल पसंद नहीं --- पर पाकिस्तानी मुसलमान कहते हैं -- काश हमें मोदी जैसा नेता मिला होता ।
पाकिस्तानी मानते हैं कि मोदी ने हिंदूओं के लिए बहुत कुछ किया है । पर यहां के हिंदू कहते हैं मोदी जी ने हमारे लिए कुछ नहीं किया ।
अब बताओ -- मैं किस पर विश्वास करूं
आजादी के बाद 70 साल से हमारे अपने देश में -- हमारे भगवान का मन्दिर नहीं था -- वो भी बना -- और स्थापना का सौभाग्य मोदी जी के हाथ में था । तो कई लोगों का जलना स्वाभाविक है ।
नया संसद भवन अपने कार्यकाल मे बनवाया -- तो जलन और बढ गई । इतनी बढ गई कि विपक्ष ने संसद भवन के प्रवेश समारोह का ही बहिष्कार कर दिया ।
सभी को लगता था कि कश्मीर से धारा 370 - कभी नहीं हट सकती । फारूख खुलेआम कहता था .... अगर 370 को हाथ लगाया तो कोई भारत का झंडा फहराने वाला कोई हाथ नहीं मिलेगा । पर झंडा भी लगा -- और झंडा फहराने वाले हाथ भी मिले । पाकिस्तान बिलबिला कर रह गया -- यूनाइटेड नेशंस भी कुछ नहीं कर पाया ।
1400 साल पुराने तीन तलाक के कानून को खत्म कराया । सोचा मुस्लिम औरतें बहुत खुश होंगी और मोदी को भर भर कर वोट मिलेंगे -- पर नहीं -- राहुल ने 8500 का झूठा लालच देकर दिखा दिया -- कि देखो -- कैसे कांग्रेस इस कौम को 70 साल से बेवकूफ बना रही है -- यह काम तो कांग्रेस बिना कुछ दिए भी करवा सकती है ।
राष्ट्रपति पद पर माननीय द्रोपदी मुर्मू को सम्मानपूर्वक आसीन किया कि लोगों मे विश्वास जगे कि -- मोदी जी देश के अंतिम पंक्ति में बैठने वाले लोगों का भी विशेष ध्यान रखते हैं । पर फिर भी कुछ लोग राहुल के झूठे बहकावे में आ गए । वरना जिस कांग्रेस पार्टी ने उनकी 60 साल में सुद नहीं ली । जिनके विकास के बिल " मंडल कमीशन बिल " को कांग्रेस ने रोका । उनको भ्रमित करके , कांग्रेस सत्ता में वापसी का सपना देख रही है ।
भूल तो 1984 के दंगों को सिख कौम भी गई । मानो उन्होंने स्वीकार कर लिया -- कि " बड़ा पेड़ जब गिरता है तो धरती तो हिलती है " इस एक लाइन के बयान से हजारों लोगों का खून माफ करवा लिया गया ।
अंत में , मैं इतना ही कि मोदी जी की देश भक्ति अतुलनीय है - निःसंदेह है ।
मुझे लगता था कि प्रबुद्ध वर्ग में मात्र गिने-चुने परिवार में ही अनुशासनहीनता आई है लेकिन संसद परिसर में घटित कल की घटना यह दर्शाती है कि अनुशासनहीनता अब राष्ट्रीय समस्या बनती जा रही है। किसी भी प्रजातांत्रिक व्यवस्था में कोई व्यक्ति या दल के लिए आवश्यक नही कि वही सरकार बनावे। ऐसी सोंच प्रजातंत्र की नही वल्कि तानाशाह की होती है। यह सही है कि जिस दल ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर भारत को गुलामी से मुक्ति दिलाने हेतु काम किया वह कांग्रेस पार्टी थी। कांग्रेस का सत्याग्रह और आजादी के दीवाने क्रांतिकारियों के क्रांति का संयुक्त प्रतिफल था जिसने अंग्रेजों को भारत छोड़ने हेतु मजबूर किया। लेकिन आजादी के बाद क्रांतिकारियों को कभी पदलोलुप्ता नहीं रही और कांग्रेस पार्टी निर्वाध स्वतंत्र भारत में सरकार बना ली। उस समय कांग्रेसियों को सपने में भी ऐसा विश्वास नही था कि एक दिन कोई दूसरी पार्टी भी सरकार बना सकती है जिस कारण सरकार बनाने का अधिकार कांग्रेस पार्टी सिर्फ अपना समझने लगी थी लेकिन ऐसा हो न सका और धीरे धीरे सरकार गठन का काम कांग्रेस के हाथ से फिसलकर अन्य दलों के हाथ में चली गई जो अब कांग्रेसियों को पच नही रही है और येन-तेन-प्रकारेण सरकार बनाने के लिए वे कार्यरत प्रतिपक्ष को काम नही करने देने के उद्देश्य से तरह तरह के व्यवधान खड़ी करते रहते हैं। फिर भी जब उनकी दाल नही गली तो वे अब उद्दंडता पर उतर गए जिसका प्रमाण कल देखने को मिला। सभी उद्दंडों का यही ध्येय होता है कि वह अपने बाहुबल के सहारे दूसरों का अधिकार हनन करें। यही कारण है कि कल राहुल की अगुवाई में कांग्रेसियों ने प्रतिपक्ष के दो सांसदों को घायल कर दिया तथा एक महिला सांसद के साथ दुर्व्यवहार किया। भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में इस तरह की घटना घटित होना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस तरह किसी उद्दंड को सही मार्ग पर लाने के लिए प्रारंभ में ही उसका हाथ-पांव तोड़ कर सबक सिखाने की आवश्यकता है उसी प्रकार स्वस्थ्य प्रजातांत्रिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए उद्दंड नेतागण एवं उनके दल को चुनाव में मटियामेट करने की आवश्यकता है। भारत की जनता अब जागरूक हो गई है और वह सब जानती है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि जो नेता या दल बाहुबल के सहारे सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं उन्हें भारतीय मतदाता ऐसा सबक सिखाएंगे कि उन्हें अपना बोड़िया-विस्तर बांध कर भारत से पलायन करने हेतु विवश हो जाना पड़ेगा वरना---? ये भारत की पब्लिक है; सब जानती है, दूसरा रास्ता भी अपना सकती है।
"उद्दंडों के लिए बस एक ही सजा,
हाथ-पांव तोड़ कर घर में बिठा।"
Friday, 13 December 2024
जब-जब बढल बा ठंढ सियासत के गांव में
तापल गइल गरीब के मड़ई के जराइके
विश्वनाथ प्रसाद 'शैदा' जी के दू गो रचना कालजयी ह । अइसे त उहां के लिखल अनेकन गो गीतन के तासीर साहित्यिक रुप से अतना पोढ आ गोट ह जवनन के तुलना कवनो भाषा के कालजयी रचनन से हो सकेला बाकिर तबो उ दुनो रचना, पहिला - बतावs चांद केकरा से कहाँ मिले जालs; आ दुसरका रचना - खुदा के भी घर बे बोलवले ना जाई । दुसरका गजल ह बाकि ह बड़ा शानदार । करेजा खखोर के राखि देला । माने कहल जाला कि जब अनुभव रुपी पथर प जिनिगी रगराले घिसाले त उ रीठा हो जाले, ठीक ओइसहीं शैदा जी के उ गजल रीठा ह ।
पिछला कुछ समय से किताब पढे लिखे के छुटल रहल ह, काम के व्यस्तता तनि बेसी हो गइल बा एह वजह से किताब के लमहर बैकलाग हो गइल बा आ डॉ उदय नारायण तिवारी जी के किताब ' भोजपुरी भाषा और साहित्य' फेरु से अझुरा देले बिआ, जवना के रोज एक दू पैरा पढ रहल बानी । बाकिर तबो, एहि में ओडी मारत किताब, पत्र-पत्रिका के पढाई हो जाला ।
भोजपुरी में एगो पत्रिका ह 'परास' लमहर समय ले इ पत्रिका आपन छाप, भोजपुरी भाषा आ साहित्य प छोड़ले बिआ आ एह पत्रिका के संपादक हईं डॉ आसिफ रोहतासवी जी । इहां के खुद एगो बड़ा शानदार आ निठाह गजल लेखक हईं । एहि 'परास' पत्रिका के अप्रैल-जून-2010 अंक के पढत रहनी ह । असल में इ अंक कानू सान्याल के समर्पित बड़ुवे बाकिर पत्रिका के पहिला पन्ना पलटते जगन्नाथ जी के लिखल दू गो गजल पढे के मिलल ह । अउरी बहुत कुछ पढे के मिली एह पत्रिका में बाकिर हमार अंगुरी एह 44 पेज के पत्रिका में पेज नम्बर 29 प जा के रुक गइल ह आ फेरु पढे के मिलल ह, शैदा जी लिखल गजल ( खुदा के घर) के तेवर के समानांतर चले वाला एगो गजल ।
एह गजल के लेखक बानी रामेश्वर प्रसाद सिन्हा 'पीयुष' जी ।
गजल के पढीं -
कतनो हिया में बात के राखी छिपाइके
तबहूँ निकल ऊ जात बा ओठन प आइके
लागल कि मन फुहार में भींजी गतर-गतर
केहू गइल उमेद के बदरी उड़ाइ के
जिनिगी भ जे अन्हार में घुट-घुटके मर गइल
राखल बा का मजार प दीया जराइके
जेकरा कउल प हमरा भरोसा रहे बहुत
अचके मुकर गइल बा ऊ मंदिर में जाइके
कइसे कहीं, लगाव ना उनुका ले रह गइल
रिस्ता टिकल बा दोस्त से दुश्मन प आइ के
जब-जब बढल बा ठंढ सियासत के गांव में
तापल गइल गरीब के मड़ई के जराइके
कइसन ह सुख सुराज के 'पीयुष' का कहीं
कुछ लोग लूट लेत बा तिकड़म भिडाइके
बहर कहीं मक्ता कहीं शेर कहीं जवन मन करे तवन कहीं बाकिर एह गजल के पढत घरी आ एकर माने बुझत घरी रउवा भोजपुरी भाषा आ साहित्य के तेवर के थाह लागी आ संगे संगे, एगो बिदेसी विधा में भोजपुरिया लेखनी के जबराट बाकिर मुलायम भाव रउवा सभ के पढे के मिली ।
परास पत्रिका के इ अंक भोजपुरी साहित्यांगन प लागल बा रउवा सभ एह अंक के ओजुगा से फोकट में डाउनलोड क के पढ सकेनी , अउरी बहुत कुछ बा ओह में जवनन के पढि के आपन विचार राखि सकेनी ।
एहि पत्रिका में कानू सान्याल प लिखत राजकमल चौधरी के एगो बड़ा शानदार हिंदी रचना के जिक्र बा जवन, हमरा निजी रुप से बड़ा जबरजस्त आ शानदार लागल । उ हिन्दी रचना ह -
आदमी को तोड़ती नही हैं लोकतांत्रिक पद्धतियाँ
केवल पेट के बल उसे झुका देती हैं
धीरे-धीरे अपाहिज
धीरे-धीरे नपुंसक बना लेने के लिए
उसे शिष्ट राजभक्त
देशप्रेमी नागरिक बना लेती है
आदमी को इस लोकतंत्री संसार में
अलग हो जाना चाहिए ।
राजकमल जी के एह पंक्तियन के पढला के बाद अब एक हाली फेरु से रामेश्वर प्रसाद सिन्हा जी के उपर के गजल के अंतिम दू गो शेर के पढीं -
जब-जब बढल बा ठंढ सियासत के गांव में
तापल गइल गरीब के मड़ई के जराइके
कइसन ह सुख सुराज के 'पीयुष' का कहीं
कुछ लोग लूट लेत बा तिकड़म भिडाइके
भोजपुरी भाषा आ साहित्य के विकास खातिर, भोजपुरी में लिखत पढत रहीं । भोजपुरी, बड़हन भूभाग के भाषा ह एह से ओह बड़हन भूभाग प एह भाषा के तेवर आ ताव बना के राखे खातिर एह में लिखल पढल जरुरी बा ।
- नबीन कुमार