क्या हो चला है हमको आज।
आज अब अपनों पर ही भरोसा न रहा।
अनजान से हँस कर बोलना, बच्चों को बच्चा समझ संजीदा हो जाना, दोस्तों से दोस्ती निभाना, किसी को केक, टॉफी, पानी, शर्बत, मिठाई खिलाना - सब बन्द हुआ चाहता है।
माँ, बेटी बहन सब खत्म,
बच्चा -बच्ची सब खत्म ,
बस फकत औरत और मर्द हुआ चाहता है।
दो दिन की औरत ,चार साल का मर्द-
बस इतना ही सब कुछ हुआ चाहता है।
न मुझे तुम पर एतबार ,
न तुम्हें मुझ पर ।
तुम मेरी कमजोर नस, मेरी कमजोरी,
भूल से खुली छूट गई खिड़की, मकान, बकरी , बेटी खोजते चलते हो ,
मैं दिन भर एक जाल कंधे पर ढोता रहा कि कब तुम या तुम्हारे घर आंगन की कोई अकुताई सन्तान या खुद तुम मेरे डब्बे में गिरने चले आते हो।
मैंने भतेरे दलाल रख छोड़े है।
यह हो क्या रहा है।
मेरे कदम लड़खड़ाने का इंतजार तुम्हीं नहीं में भी कर रहा हूँ। मैं अपाहिज हो तुम्हारी दुआओं का मोहताज़ हुआ चाहता हूं। मुझे भीख, दया, कृपा, जागीर ,सनद चाहिये।
मैं कदमों में गिर रहना चाहता हूं।
क्या सच मैं यही चाहता हूं।
किसी पर भरोसा नहीं ?
कोई भरोसे लायक नहीं !!
आज अब अपनों पर ही भरोसा न रहा।
अनजान से हँस कर बोलना, बच्चों को बच्चा समझ संजीदा हो जाना, दोस्तों से दोस्ती निभाना, किसी को केक, टॉफी, पानी, शर्बत, मिठाई खिलाना - सब बन्द हुआ चाहता है।
माँ, बेटी बहन सब खत्म,
बच्चा -बच्ची सब खत्म ,
बस फकत औरत और मर्द हुआ चाहता है।
दो दिन की औरत ,चार साल का मर्द-
बस इतना ही सब कुछ हुआ चाहता है।
न मुझे तुम पर एतबार ,
न तुम्हें मुझ पर ।
तुम मेरी कमजोर नस, मेरी कमजोरी,
भूल से खुली छूट गई खिड़की, मकान, बकरी , बेटी खोजते चलते हो ,
मैं दिन भर एक जाल कंधे पर ढोता रहा कि कब तुम या तुम्हारे घर आंगन की कोई अकुताई सन्तान या खुद तुम मेरे डब्बे में गिरने चले आते हो।
मैंने भतेरे दलाल रख छोड़े है।
यह हो क्या रहा है।
मेरे कदम लड़खड़ाने का इंतजार तुम्हीं नहीं में भी कर रहा हूँ। मैं अपाहिज हो तुम्हारी दुआओं का मोहताज़ हुआ चाहता हूं। मुझे भीख, दया, कृपा, जागीर ,सनद चाहिये।
मैं कदमों में गिर रहना चाहता हूं।
क्या सच मैं यही चाहता हूं।
किसी पर भरोसा नहीं ?
कोई भरोसे लायक नहीं !!
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