Wednesday, 22 February 2017

सचमुच बड़ों के साथ उठना बैठना भी एक कठिन काम है। बच्चे का विद्यालय जाना एक कठिन काम है। वहां बच्चों को अपने से  साथ बैठना ,उठना , बोलना , चलना पड़ता है , अनजान लोगों  के साथ बात चित करना सीखना पड़ता है।
मैं शुरू से ही अपने से बड़ों के प्रति अनायास आकर्षित हो जाया करता था। मैं सोचा करता था कि ये भी तो किसी माँ के पुत्र ही तो होंगे।
महात्मा गाँधी , नेल्सन मंडेला ,विवेकानन्द , हिटलर ,न्यूटन ,सेक्सपियर ,चैतन्य , मार्टिन , दयानंद , विद्यासागर , दा विन्सी , आर्कमिडीज ,आर्यभट्ट , तुलसी  - क्या ये सभी अपनी क्या ये सभी अपनी अपनी माँ की गोद में वैसे ही नहीं खेले होंगे जैसे मैं। 

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