Saturday, 21 November 2015

खिला हुआ तो दिख जाता है , बहुत से खिले को सराहने वाले भी मिल जाते हैं , पर खिलने की प्रक्रीया से गुजरना कैसी सिहरन पैदा करता है, यह तो शून्य से यात्रा की शुरूआत करने वाला ही जानता है .बिना बीज , बिना जमीन , बिना गड़े , जला देने वाली कड़ी जानलेवा धूप में बिना पानी , जिवित रहना ही मुश्किल होता है - फिर उगना फूल , फल तक बढ़ना कितना अजीभ है , फिर बीच बीच में ईर्ष्या , टाँग खैँचू प्रतियोगिता, अकारण हानि कर मस्त होने वाले तत्व, और पग पग का अपमान - इन सब के बाद भी शुद्ध रहने का आग्रह , झुकूँगा नहीं यह जीद्द, किसी की हानि नहीं होने देने का स्वभाव

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