श्रद्धा, भक्ति ,प्रतिष्ठा के पात्र बनने का प्रयास किया जा सकता है, अनुसरण योग्य आचरण किया जा सकता है, अनुकरणीय बनने की इच्छा ही उत्तम प्रतीत होती है.
करूणा, दया, अनुग्रह के पात्र बनने से बचा जा सकता है. अन्धा बना रह कर पीछे पीछे चलने से बचा जा सकता है.
खुशामद , चाटुकारिता, , अनुनय , विनय - यही सारे मार्ग नहीं है - पुरुषार्थ, पराक्रम , अध्यव्यवसाय, अतिरिक्त परिश्रम , अतिरिक्त धैर्य , अतिरिक्त संधर्ष ,अतिरिक्त चिन्तन-मनन-अध्ययन-प्रग्या भी उपलब्ध मार्ग एवं विकल्प है ही .
निन्दा अथवा कटुता से बचने के लिये ही पहले से चले गये मार्ग का कायरता के साथ अनुसरण करना ही सहज विकल्प प्रतीत होता है पर इसका मुल्य आत्मसम्मान की हानि के रुप में चुकाना पड़ता है, विकास का आगे का मार्ग अवरुद्ध होता है
करूणा, दया, अनुग्रह के पात्र बनने से बचा जा सकता है. अन्धा बना रह कर पीछे पीछे चलने से बचा जा सकता है.
खुशामद , चाटुकारिता, , अनुनय , विनय - यही सारे मार्ग नहीं है - पुरुषार्थ, पराक्रम , अध्यव्यवसाय, अतिरिक्त परिश्रम , अतिरिक्त धैर्य , अतिरिक्त संधर्ष ,अतिरिक्त चिन्तन-मनन-अध्ययन-प्रग्या भी उपलब्ध मार्ग एवं विकल्प है ही .
निन्दा अथवा कटुता से बचने के लिये ही पहले से चले गये मार्ग का कायरता के साथ अनुसरण करना ही सहज विकल्प प्रतीत होता है पर इसका मुल्य आत्मसम्मान की हानि के रुप में चुकाना पड़ता है, विकास का आगे का मार्ग अवरुद्ध होता है
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