तुमने कहा ,यह मेरा है ---मैनें कभी पलट कर पूछा ही नही की इसमें मेरी पच्चीस वर्ष की आपसे अधिक मेहनत लगी है -आज यह आपका कैसे हो गया .
वह दिन और आज का दिन मैंने फिर पलट कर पूछा ही नहीं , वहाँ पांव भी नहीं रखा , चित से दिया उतार .
तुमने एक दिन सहसा कहा कि ये देनदारिया तुम्हारी .
मैंने पलट कर पूछा ही नही यह सारी देनदारी मेरी कैसे .
तुमने कहा आज के बाद तू अपना देख, बाद में मैं खाने का भी हिसाब लूँगा .
मैंने उस दिन के बाद से कहना ही कम कर दिया , ध्यान रखा की जितना खा ता हूँ उससे अधिक का चौका का सामान मुहैया करवा दूँ , और चौका का सारा काम तो यह करती ही थी .
इसका पहला चद्दर का क्नसाइनन्मेंट पटना से आया था , शाम को तुमने उससे कहा ३५ रुपया दो , बिल्टी भाड़ा लगा है - मैंने या उसने कुछ नहीं कहा .
तुमने कहा नौकरी के लिए जा रहे हो तो जाओ पर मुझसे कभ इमरजेंसी में भी कुछ उम्मीद मत करना ,वह दिन और आज का दिन , मैनें खाना -चाय भी कभी मन से नहीं किया .
मैं भरी जेठ की दोपहरी में पहुचा , सब कुछ ठीक ही था ,मैं चार घंटे बैठा रहा , किसी ने पानी , चाय , खाना तक नहीं पूछा .मैं उठा , अंत में पड़ोसी के घर जा कर पानी पीकर पांच छ घंटे बाद निकल लिया .
मुझे एक बार एक रोटी और एक पीस आलू परोसा गया. फिर पुछा गया की और लेंगे क्या.
मैं निकला और घर में रंग रोगन ,करवाया गया .
मैं गया ,सब कुछ सामान्य था .मैं वापस आया , दुसरे दिन मेरे से बिना पूछे घर को रिमाडलिंग का काम शुरू. मुझे खबर तक नहीं
बोल लेने दो ,मुझे बोल लेने दो ,मेरा मन हल्का हो जायेगा .
वह दिन और आज का दिन मैंने फिर पलट कर पूछा ही नहीं , वहाँ पांव भी नहीं रखा , चित से दिया उतार .
तुमने एक दिन सहसा कहा कि ये देनदारिया तुम्हारी .
मैंने पलट कर पूछा ही नही यह सारी देनदारी मेरी कैसे .
तुमने कहा आज के बाद तू अपना देख, बाद में मैं खाने का भी हिसाब लूँगा .
मैंने उस दिन के बाद से कहना ही कम कर दिया , ध्यान रखा की जितना खा ता हूँ उससे अधिक का चौका का सामान मुहैया करवा दूँ , और चौका का सारा काम तो यह करती ही थी .
इसका पहला चद्दर का क्नसाइनन्मेंट पटना से आया था , शाम को तुमने उससे कहा ३५ रुपया दो , बिल्टी भाड़ा लगा है - मैंने या उसने कुछ नहीं कहा .
तुमने कहा नौकरी के लिए जा रहे हो तो जाओ पर मुझसे कभ इमरजेंसी में भी कुछ उम्मीद मत करना ,वह दिन और आज का दिन , मैनें खाना -चाय भी कभी मन से नहीं किया .
मैं भरी जेठ की दोपहरी में पहुचा , सब कुछ ठीक ही था ,मैं चार घंटे बैठा रहा , किसी ने पानी , चाय , खाना तक नहीं पूछा .मैं उठा , अंत में पड़ोसी के घर जा कर पानी पीकर पांच छ घंटे बाद निकल लिया .
मुझे एक बार एक रोटी और एक पीस आलू परोसा गया. फिर पुछा गया की और लेंगे क्या.
मैं निकला और घर में रंग रोगन ,करवाया गया .
मैं गया ,सब कुछ सामान्य था .मैं वापस आया , दुसरे दिन मेरे से बिना पूछे घर को रिमाडलिंग का काम शुरू. मुझे खबर तक नहीं
बोल लेने दो ,मुझे बोल लेने दो ,मेरा मन हल्का हो जायेगा .
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