Friday, 6 February 2015

बगीचे में इतने फूल खिलेंगे ,कभी सोचा ही नहीं था ,
सच तो यह है कि बगीचे के बारे में ही नहीं सोचा था
जमीन खड़े होने को तो थी ही नहीं मेरे पैर के नीचे
बगीचा , फूल , पेड़ , छाया , जड़ें कहाँ ,कैसे सोचता
सोचता भी तो कहाँ पाता , देता कहाँ से इनको पानी
पर यह सुबह आ ही गयी ,आज बगीचा आपका दिया
बगीचे के ये सारे फूल ,रंग बिरंगी नाचती ये तितलियाँ
फैलती जा रही इनकी यह सुगंध ,सुन्दर है ये सौन्दर्य
बस सब  कुछ आपका ही तो है जो आपको समर्पित
पर जो भी दिया, जो जैसा भी है, लाजबाब दिया खूब है
बस इसे बसा कर ,बचा कर, बना कर बढ़ा कर रखना .

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