Friday, 6 February 2015

तुमने यह  कर डाला .
हाँ यह सही है कि मैं कम-समझ था , मुझे नहीं पता था कि मैं सबोर्डिनेट नौकर था और मुझे नौकर की तरह सर झुका कर मालिक के आदेशों का पालन कर देना चाहिये था .
नौकर के लिये बॉस का आदेश ही सर्वोपरी होता है .मुझे स्बर्दिनेसं का अनुभव नहीं था .
मैं मालिक के अंडर में कभी नहीं रहा था .
मुझे उचित और न्याय ही पसंद था .
मैं अन्याय बर्दास्त नहीं कर पाता .
 किसी स्टाफ की अनुचित हरकत बर्दास्त नहीं करता था .
 मैं निर्दयी नही होना चाहता पर मैं गलत होते देख मूक दर्शक नही रह  पाता . मैं अनुपस्थित स्टाफ ,लापरवाह  स्टाफ , काम नहीं रने वाले स्टाफ को बर्दास्त नहीं कर पाता .
मुझ पर बड़े लोगो के नाम पर धौंस जमाने की कोशिश बर्दास्त नहीं होती .
मैंने नैतिकता के छद्म रूप न देखे न नैतिकता को तोड़ने मरोड़ने का कोई अनुभव था न सीखा था .
मैं गलत को गलत ही समझा करता था , सही को सही ही समझता था ..
फिर मैंने यह भी नही समझा की यही व्यक्ति आगे चल कर प्रतापी हो मेरा भाग्य विधाता हो मुझ्से ब्यक्तिगत दुर्भाव रखेगा .
 मैं ऐसे लोगों के इशारे पर होने वाले उपद्रव का स्रोत -कारण भी जानने में असफल रहा ,
मैं राजनैतिक रूप से दुश्मनी को देखने -समझने -परखने में असमर्थ रहा .
मैं जब जैसा -तब तैसा भी नहीं समझ सका 
खैर मैं  यह सब लिख डाल  रहा हूँ .
यह एक तरह से मेनेजमेंट के गुर { रहस्य  } हैं ,  नैतिकता से छद्म रूप से खेल खेलना शायद योग्यता का ही अंश है . शायद इसे ही टैक्ट कहते हैं .
जो झूठ सच का मिश्रण सफलता पूर्वक नहीं कर पाते वे टैक्ट लेस कहलाते हैं.
पर मैं विपरित परिस्थिति में पारदर्शी  हो कड़ा और तन कर खड़ा हो जाता था जिसके कारण  कोई मेरी हत्या नहीं कर सका .
काम में करता ही था .  . हाँ , पाप का साथ नही दे पाता था . पर पापी से खाम खाह  टकराता नहीं था , पर उसे प्रश्रय नहीं देता था.

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