Wednesday, 4 September 2013

सब कुछ फिसल क्यों जाता है

मेरा खून क्यों पानी हुआ जाता है
तुम्हरा ,इत्र कैसे बनता जाता है।

मेरे पसीने से, दो रोटियौं भर
बस आँटा ही क्यों गूँथा जाता है

तुम्हारा, शरबत कैसे बन जाता
चरणामृत सबको पिलाता है।

उगाता रहा मैं अनाज जिन्दगी भर
मेरी मुट्ठी ,झोली नहीं भर पाती है

 तुम, इत्र लगाते, शरबत पीते
चरणामृत पिलाते, गोदाम भर जाती है

आखीर मेरे ही साथ ऐसा क्यों
सब कुछ फिसल क्यों जाता है


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