उसका यूँ दरवाजे दरवाजे भटकना
अच्छा क्यूँ नहीं लगता।
वह मेरा लगता ही क्या है
फिर भी,
उसका देहरी देहरी मुँह उठाये
हर सुबह सिर पटकना
अच्छा क्यूँ नहीं लगता।
भटकता वह है ,उदास चेहरा
उसके पास कोइ नहीं फटकता
किसी का भी नही फटकना
अच्छा क्यूँ नहीं लगता।
घूरता फिरता हर दरवाजा
जाने क्या क्या ढ़ूँढ़ता है
नही जब कुछ मिलता
दिखता मुँह का यूँ लटकना
अच्छा क्यूँ नहीं लगता।
घूमता रहता शाख शाख
कभी फूलों मे कभी काँटों मै
फँसता रहा बार बार
हर बार उसका यूँ अटकना
अच्छा क्यूँ नहीं लगता।
अच्छा क्यूँ नहीं लगता।
वह मेरा लगता ही क्या है
फिर भी,
उसका देहरी देहरी मुँह उठाये
हर सुबह सिर पटकना
अच्छा क्यूँ नहीं लगता।
भटकता वह है ,उदास चेहरा
उसके पास कोइ नहीं फटकता
किसी का भी नही फटकना
अच्छा क्यूँ नहीं लगता।
घूरता फिरता हर दरवाजा
जाने क्या क्या ढ़ूँढ़ता है
नही जब कुछ मिलता
दिखता मुँह का यूँ लटकना
अच्छा क्यूँ नहीं लगता।
घूमता रहता शाख शाख
कभी फूलों मे कभी काँटों मै
फँसता रहा बार बार
हर बार उसका यूँ अटकना
अच्छा क्यूँ नहीं लगता।
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