बहते बहते भी वहाँ कुछ क्यूँ रह जाता है
जाते जाते भी वह कुछ क्यूँ कह जाता है
सहते सहते भी वहाँ कुछ क्यूँ ढह जाता है
शाय़द उसका भाग्य,तभी तो लह जाता है.
जाते जाते भी वह कुछ क्यूँ कह जाता है
सहते सहते भी वहाँ कुछ क्यूँ ढह जाता है
शाय़द उसका भाग्य,तभी तो लह जाता है.
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