Friday, 6 September 2013

तुम्हारी आँखैं देखती तो है, वह कुछ असत्य भी नहीं हे, किन्तु वह जो कुछ देख रहे हो वह सीमा में बँधा है, खण्ड सत्य ही है।
 सत्य तो अनन्त तक जाता है और पूर्ण सत्य को एक बार में देखना या समझना या जानना बड़ी समस्या है।
तुम्हारा देखा, सुना, समझा, गुना गलत ही है यह मैं नहीं कहता, पर वह अन्तिम प्रमाणित सत्य नहीं है, न हो सकता है।
 आज तक कोई अन्तिम प्रमाणित सत्य की स्थापना कर ही नहीं सका है, कर ही नहीं सकता क्योंकि जिस दिन अन्तिम सत्य स्तापित हो जायेगा सब कुच स्वतः रुक जायेगा।
सत्य तो आजतक बन ही रहा है और अनन्त काल तक सत्य के बनने का क्रम चलता ही रहेगा।

No comments:

Post a Comment