Monday, 28 April 2025

 यदि बेच ही नहीं सकते तुम अपने ईमान को

तो तुम जमाने के नंबरदारों के किस काम के।


जमाने को तो चाहिए, एक अदद खिलौना बेजान

सरे राह उतारी जा सके जिसकी आबरू, औ शान।


तुम्हारी आबरू, मान, शान औ जान, किस काम  के  

मुझे न सजा सके जो, न करे खिदमत, किस काम के।


लाख इल्म, ईमान या हुनर हो, जमाना जिक्र कब करता है 

मतलब निकले जिससे, जमाना फ़िक्र उसी की करता है.

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