Wednesday, 19 June 2019

पारिवारिक दायित्व अधूरे थे।
स्वप्न बहुत थे।
अभावों के बीच अन्य अभावग्रस्तों से कब कौन सा रिश्ता कायम हो गया पता ही नहीं लगा।
अपनों को , खुद को भूखा, नङ्गे रख कर भी दूसरे की चिंता करने की बुरी आदत शायद 1973 में लग गयी, सो आज भी है।
खुद को क्या कहूँ।
अपनों से बस क्षमा माँगता रहता हूँ।
आपसे दूर नहीं था।
एक काल क्रम में विराम लिया था।
क्षमा प्रार्थी हूँ।

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