तो ऐसे में क्या कहें इनको? कहने को कुछ कहिए परन्तु सच्चाई तो बदलने वाली है नहीं और सच्चाई यही है कि आज सभी देश के लिए घातक बन चुके हैं। सभी के अपने स्वार्थ देशहित से ऊपर आ चुके हैं। यही सर्वाधिक दुखद है। यहाँ किसी के समर्थन या विरोध की बात नहीं है। बस बात है उस सच्चाई को समझने की जिसको जानते हुए भी हम नजरअंदाज करते हैं और देश के साथ, अगर कहूँ कि गद्दारी करते हैं, तो यह गलत नहीं होगा। यह बात जानने व मानने के बावजूद हम यदि अकर्मण्यता की स्थिति में हैं तो यह धोखा है देश के साथ। यह बात हम जितनी जल्द समझ ले उतना ही बेहतर होगा। परन्तु हमारे स्वार्थ ऐसा होने देंगे, मुझे शक है।
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