नींव का अभाव आज भी कचोटता तो है ही न । जब कभी वह जली हुई खिचड़ी, बे घर , बे आबरू , बियाबान जिंदगी , पचास साल पुरानी याद आ ही जाती है ।
एकाएक कॉप जाता हूँ।
अगली सुबह का भी भरोसा न था ।
किसी के आदर सत्कार आतिथ्य ब्यवहार का प्रश्न ही कहाँ था।भविष्य भी कुछ होता है जानता तक न था ।
आज भी वे दिन याद आ जाने पर पसीना आ जाता है , दिमाग सुन्न हो जाता है।
यह इसलिए तू।हैं बता रहा हूँ क़ि कहीं तुम हिम्मत न हार जाओ ।
यदि मैं लड़ गया , लड़ कर बच गया , उग गया , आज हूँ तो तुम भी उग बढ़ सकते हो।
एकाएक कॉप जाता हूँ।
अगली सुबह का भी भरोसा न था ।
किसी के आदर सत्कार आतिथ्य ब्यवहार का प्रश्न ही कहाँ था।भविष्य भी कुछ होता है जानता तक न था ।
आज भी वे दिन याद आ जाने पर पसीना आ जाता है , दिमाग सुन्न हो जाता है।
यह इसलिए तू।हैं बता रहा हूँ क़ि कहीं तुम हिम्मत न हार जाओ ।
यदि मैं लड़ गया , लड़ कर बच गया , उग गया , आज हूँ तो तुम भी उग बढ़ सकते हो।
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