क्या यह सही नहीं है कि हम आज भी एक दूसरे से पूरी तरह अनजान है। लगभग कोई पल ऐसा नहीं बीता होगा कि किसी बलखाती इठलाती लहर ने तुम्हारा जिक्र नहीं किया हो। हवा के हर झोंकें ने मुझे तुम्हारे बारे में बताया है। शायद तुम्हें भी बताया हो। वैसे मुझे तुम्हारे बारे में पता तो है। सदियों से साथ जो हमलोग रह रहे हें। मैं समझता हूँ तुम्हें भी मेरे बारे मे जानकारी होगी ही। आखिर मेर पास से भी खेल खाकर जाती लहरे मेरे बारे में तुम्हें कुछ तो बता ही जाती होगी। नहीं भी बताती हो तो भी जैसे मैं कयास लगा रहा हूँ, वैसे कयास तो लगा ही सकते हो।
वेसे मैंने कयास से ही लिखा है- मैं सही सही नहीं जानता- यह सकता होना चाहिये या सकती। वैसे लहरों ने मुझे भी अपने बारे में कुछ पूरा पूरा नहीं बताया। एक तो उन्हें वक्त ही कहाँ, दौड़ते ,उछलते,कूदते आती है, मुझै उन में से सभी से मुलाकात भी तो नहीं होती, कभी -कभार दरश-परश भर ही तो होता है, पल भर भी तो नहीं ठहरती,असंख्य लहरें, और वे भी कभी स्थिर थोड़े ही रहती हैं, अल्हड़ ,बेफिक्र -निःशंक अनछुया निष्पाप निःश्छल बचपना सा इन लहरों का यह खेलना, कूदना वह भी मेरे आँगन में मुझे खशियाँ दे जाता है- पर सच यही है कि न उन्होंने मूझे पहचाना न मैंने, और भी अजीब यह है कि इन लहरों का मेरे साथ क्या रिश्ता है- मैं आज तक नहीं समझ पाया।
वैसे रिस्ता मेरा तुम्हारे साथ भी क्या हो सकता है ,मैं नहीं समझ पाया। साथ साथ पैदा हुए,जुड़वाँ भाई हुए, लगातार साथ रहते आए हैं तब फिर भाई, पर हमारा साझा क्या है,हम आपस में मिलते क्यों नहीं, हममे यह दूरी क्यों---
य़े लहरें न मेरी न तुम्हारी, एक पल भी ठहर कर कभी हाल जो पूछा हो। पानी की दिवार हमारे बीच इन्हीं लहरों की सौगात है। पूछो तो न, लहरों को, एक बार भी कोइ सी भी भूळकर भी वापस जो आई हो।मदहोश,उमड़ती-घुमड़ती भागे जाती है।
कभी जो रुकी हो।
बेतहासा भागती ये लहरें पूरे वेग से मुझसे टकराती रहती है- तुम्हारा भी तो यही हाल होगा। कभी यह भी नहीं समझती कि यह मैं ही हूँ जो उन्हें आदर से आगे बढ़े देता है, न तो खेत- खलिहान, गड्ढ़े, ताल-तलैया उन्हे लीलने को तैयार बैठे हैं। वे तो इतनी उन्मत्त रहती हैं कि कई एक बार मेरा भी कहा नहीं मानती, मुझसे लड़ झगड़ का जिद्दी बच्चे की तरह पसर ही जाती है ।मुझसे ऐसे में उनकी दुर्दशा देखी नहीं जाती। निष्कलंक लहरों का मान मर्दन जब ताल-तलैया करते हैं-सरे आम ,तो पीड़ा होती है।
कितनी ऐश्वर्यशाली लहरें हुआ करती थी,पहाडों से ऊमड़ती-घुमड़ती जा मिलती है समुद्र से। तुम्हारे हमारे सहारे ही न।
क्यों ये अल्हड़ लहरें उतावली हो बहक कर लहरों से बाढ़ बनने को आतुर हो जाती है। सैलाब बन कर सितमगर की तरह हर जगह दुत्कार खाती ये लहरें- मुझसे नहीं देखी जाती।
सच ही है, मर्यादा का उलंघ्घन केवल अपयश ही दे जाता है। मर्यादा और सतत संघर्ष बूंद को धार, धारा को लहर,लहर को नदी तथा नदी को समुद्र तक की यात्रा करने में मदद करते हैं।
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