Friday, 26 August 2022

 "मैं उस माटी का वृक्ष नहीं,

जिसको नदियों ने सींचा है ।

बंजर माटी में पलकर मैंने,

मृत्यु से जीवन खिंचा है ।।


मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं,

शीशे से कबतक तोड़ोगे...?

मिटने वाला मैं नाम नहीं,

तुम मुझको कबतक रोकोगे...!"

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