"मैं उस माटी का वृक्ष नहीं,
जिसको नदियों ने सींचा है ।
बंजर माटी में पलकर मैंने,
मृत्यु से जीवन खिंचा है ।।
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं,
शीशे से कबतक तोड़ोगे...?
मिटने वाला मैं नाम नहीं,
तुम मुझको कबतक रोकोगे...!"
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