सच सुनता कौन है।
बोलता भी तो कोई नहीं।
बोलने के पहले जोड़ घटाव शुरू।
सच बोलने के नफे नुकसान का बड़ा भारी हिसाब लगाया, जोड़ा।
घटाया जाता है।
कब, कितना कैसे का अंदाज लगाया जाता है।
सच की पैकिंग भी आजकल बड़ी जबरदस्त होती है।
यह सब न हो , कोरा सच हो तो असभ्य, उज्जड, गंवार, आदि विशेषण झेलने पड़ते हैं।
बोलता भी तो कोई नहीं।
बोलने के पहले जोड़ घटाव शुरू।
सच बोलने के नफे नुकसान का बड़ा भारी हिसाब लगाया, जोड़ा।
घटाया जाता है।
कब, कितना कैसे का अंदाज लगाया जाता है।
सच की पैकिंग भी आजकल बड़ी जबरदस्त होती है।
यह सब न हो , कोरा सच हो तो असभ्य, उज्जड, गंवार, आदि विशेषण झेलने पड़ते हैं।
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