Friday, 3 March 2017


एक आयातित विचार जो लगभग त्यक्त हो चुके है, जिनकी उपयोगिता कब की नष्ट हो चुकी है कि लाश ढो रहे अब भारत में नित्य नया स्वाँग रचते रहते हैं।
अपने आप को अप्रासंगिक जानते हुए भी अभी भी अपने पहले के पैदा किये अंधभक्तों के माध्यम से मीडिया में स्थान प्राप्त करते रहते है ।
मिडिया ऐंकर अपने ब्यक्तिगत पूर्वाग्रह से न केवल अपनी ब्यक्तिगत विश्वसनीयता खोते जा रहे है वरन अपने सारे मिडिया जगत पर संकट पैदा करते है ।
सच तो यह है कि साठ सत्तर सालों के पूर्वाग्रह और नया पूर्वाग्रह का संघर्ष है ।
नया ज्यादा प्याज खाता है। नये को आता देख पुराने सभी पूरी ताकत से जुटने लगते है ।
पुराने सभी को अपनी कमजोरियाँ पता है ।समय के प्रभाव से आ गया अवगुण भी लगभग सभी को पता लग गया है
नया तो नया है ।
उसकी सच्चाई, अच्छाई बुराई सब कुछ परखी जानी है ।
पुराना और पुराने , नये से अनभिज्ञ है । डरे रहते है ।
आया तो कहीं जम ही न जाये !
बस सारे पुराने एक हो नये को खदेड़ने लगते हैं ।
देखिये सड़े गले की चुकी फ़ौज जीतती है या नया, नव ऊर्जा से सजा नवीन ।
उत्साहित नवीन प्रस्तावना या कुत्सित समाप्त प्रायः उपसंहार

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