कुछ कहते ,कुछ सुनते ,कुछ समझते बस चला जा रहा हूँ
जब ,जहाँ फुर्सत मिले, साथ हो लेना, आवाज बस दे देना।
समझ मेँ आया अब , वे कहते कुछ है ,समझते कुछ और
आग कहीं और होती है , दूर धुंआ ए जिगर का है ये दौर।
गुमान की चादर में लिपटे देखते हो मुझे, गलतफहमी है
धुएँ से ढका हूँ ,आग धुआँति है ,जिंदगी सहमी सहमी है ।
जब ,जहाँ फुर्सत मिले, साथ हो लेना, आवाज बस दे देना।
समझ मेँ आया अब , वे कहते कुछ है ,समझते कुछ और
आग कहीं और होती है , दूर धुंआ ए जिगर का है ये दौर।
गुमान की चादर में लिपटे देखते हो मुझे, गलतफहमी है
धुएँ से ढका हूँ ,आग धुआँति है ,जिंदगी सहमी सहमी है ।
No comments:
Post a Comment