Tuesday, 12 April 2016


हजारों प्रश्न उठते हैं  -  लड़का  के शालीमार बाग की दस बीस करोड़ की कोठी में चौका बरतन की नौकरी करता है  गुमला आते ही  अल्फ्रेड लकड़ा कैसे , कब , क्यों बन जाता है। जिला स्तर की कचहरियों में रेल में यात्रियों  को नशा खिलाकर लूटने   के आरोप में बंदी ब्यक्ति  येन केन प्रकारेण जेल से छूटते ही अपने गाँव में पहुँच कर बाबू साहेब , पंडित जी कैसे बन जाता है।
कभी कभी सोचता हूँ , भारत का ग्रामीण अमूमन अपने खेतों में गाँजे ,अफीम आदि की खेती क्यों नहीं करता ?
भारत का  ग्रामीण परिवेश अभी भी अपेक्षाकृत संतुष्ट है , पवित्र है।
शायद  इसी कारण भारत  गॉवों से धोखा देकर बालाओ को लाया तो जा सकता है , मजबूर कर कोठे पर बैठाया भले जा सकता है पर गॉव से आज भी एक  भी युवती  को स्वेच्छा से इस उद्देश्य से कदम बाहर निकालने  को प्रेरित नहीं किया  सकता।
शायद इसीलिए  गाँव वैसा है जैसा दिखता है। हमारे गाँव के युवक युवतियों को आज भी अपने शरीर पर के कपड़े  उतारने में झिझक होती है। इसीलिए हमारा गाँव  आज भी वैसा ही है जैसा दिखता है। हमारा किसान मट्टी में से गेहुँ  निकालता है , दाने दाने से बोरियाँ भर कर अनाज बनाता है। 

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