Sunday, 1 September 2013

यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे अपने चरणों में क्यों बैठाते हैं।बराबर क्यों नहीं। मुझे मस्तक  का स्पर्श क्यों नहीं करने देते। चरण-स्पर्श  करना ही मेरा ध्येय बना रहे । ऐसा क्यों चाहते हैं। आप ही सदा पुज्य बने रहेंगें , मैं केवल सदा सेवक- ऐसा क्यों। आप सीधे मेरे  मस्तक पर हाथ रख देते हैं, मेरी पीठ पर हाथ फिरा देते हैं, मुझे तन-मन धन तीनों का दान करना सीखाने लगते हैं, सर्वस्व न्यौछावर करना सीखाने लगते है, चरणमृत पान करना सिखाते है, सेवा परमों  धर्मः सीखाते है- स्वयं सेवित बने रहते हैं- सदा सेवित, ऐसा क्यों।
मुझे अबला बताते हैं, सुरक्षित रहने की बात करते हैं- मूझे स्वरक्षित क्यों नहीं रहने देते। मुझै सदैव अर्द्धांगिनी ही क्यों घोषित करने का प्रयास होता रहा है- मैं अपने आप में पूरी ईकाई क्यों नहीं हो सकती। मुझै अपूर्ण क्यों बताते फिरते हो।
कलम तुम्हारे हाथ है इसलिये या रोटियों पर तुमने कब्जा कर रखा है, इसलिये।
मेरे भविष्य पर तुम्हारा स्वामित्व कैसे।

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