Monday, 2 September 2013

मेरे चुप रहने से क्या होगा, क्या सब कुछ छिपा रह जायेगा, सभी तो चुप नही रहेंगें, सब को चुप रखा भी नहीं जा सकता- फिर मैं ही चुप क्यों रहूँ- मैं तुम्हारा हूँ इसलिये या मैं बेचारा हूँ इसलिये।
वैसे मैं कहे देता हूँ- दौनो ही तुम्हारे अपने भ्रम है जो तुमने भ्रमवश पाल रखे हैं, अपनी तसल्ली के लिये जबकी तुम जानते हो की मैं न तो तुम्हारा हूँ न बेचारा।
अत्याचार- मनमानी मैं सहता हूँ, या सह लेता हूँ या सह देता हूँ या आज तक सहता रहा हूँ, इस लिये नहीं की तुम मेरे हो या मैं तुम्हारा, इसलिये भी नहीं की मैं बेचारा हूँ---- मैं तो देखना चाहता हूँ , दिखाना चाहता हूँ कि वास्तव मैं तुम क्या हो, कितना गिर सकते हो- मैं तुम्हे तुम्हारी नजरों में सदैव के लिये गिरा देना चाहता हूँ- तुम्हारी यही सजा होगी कि तुम कभी भी नजर उठा कर खुद की ओर देख न सको- तुम सदैव अपने को धिक्कारते रहो- चैन से नहीं रह सको, मेरे कारण नहीं अपने कारण।
 मैं तुम्हारी निन्दा तक का कारण नहीं बनना चाहता, अपने पतन का कारण तुम स्वयं बनों, बस यही चाहता हूँ-
किया भोगो, भाग सकते नहीं, भोग जियो।

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