Saturday, 7 January 2023

 वकालत खाने में दो तरह के वकील होते हैं। 

समर्थ परिवार के सामान्य समझ के आलसी टाइप वकील जो पूर्वजों के धन,  यश पर एक पहचान रखते हैं और वकालत खाने के सार्वजनिक समारोहों के कर्ता धर्ता,  फाइनेंश कर्ता होते हैं और इस एवज मे वकालत खाने मे आने वाले हाकिमों,  अतिथियों के बगल में बैठने,  स्वागत भाषण देने,  फोटो खिंचवाने का प्रथम अधिकार भोगते है।  कचहरी के सामान्य मुवक्किल इनसे दूर और ये उनसे दूर,  साहबों की तरह ही रहते हैं।  पूर्वजों के यश, साधन आदि के कारण इनका नाम होता हैं,  वकालत खाने की शान हैं ये,  नियमित न्यायालय मे कम ही आते जाते हैं।  इनको भी पता है कि इनको कानून की कितनी समझ है? ये जानते हैं कि थोड़ी सी फीस के बदले इतनी मेहनत और समयबद्धता इनके बस का नहीं।  ये अपने आराम और दिनचर्या में रोज रोज की खींच खींच नहीं बर्दास्त करते। ये खुशामद करते और कराते हैं, हर स्तर पर चुनाव लड़ते, लड़वाते रहते हैं,  डरते हैं  कि कौन सा वोटर गुस्सा हो जायेगा। 

खानदानी हाकिम ऐसे राय साहब, राय  बहादुर आदि के परिवारों के साधनों का अप्रत्यक्ष उपभोग करते हैं और बदले मे उनको कमिश्नर आदि की रेवड़ी थमा दिया करते हैं।  


एक दूसरे होते हैं,  जिनका काम,  समर्पण,  मेहनत,  समझ,  दिन रात ब्रीफ पढ़ते रहना  : यही जीवन हैं और हर न्यायालय मे हर मुकदमे का अपरिहार्य अंग है,  हर स्तर का न्यायाधीश इनकी अंदर से ईज्जत करता है।  ये सामान्य वंश परम्परा वाले होते हैं। ये हाकिमों के साथ फोटो खींच वाने के आतुर नहीं रहते।  हाकिम और मुवक्किल दोनों इनकी ईज्जत करते हैं।  हाँ,  धीरे-धीरे ये कठोर होते जाते हैं।  खरा खरा बोलते है।


ये लोकप्रिय नहीं उपयोगी होते हैं।  लोकप्रियता के लिये नहीं अपनी मेहनत,  समझ, अपने मुकदमे के लिये काम करते हैं। 

राजनैतिक रूप से भी स्पष्ट होते हैं।ये खुशामद पसन्द नहीं,  अपनी फीस पसन्द होते हैं।

ये बाप दादा के नाम का ढोल नहीं पीटते।  सारी कचहरी इनकी निष्ठा,  क्षमता और विधिक ज्ञान- चातुर्य  का ढोल बजाती है, ये बस अपना काम करते रहते हैं

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