Thursday, 31 March 2022

 शिक्षक सामाजिक, व्यवाहारिक औचित्य का स्वरूप समझाता है,  अनुरोध करता है,  निरूपित करता है,  समझाता है। 

न्यायाधीश उसी की मात्रा घोषित करता है और त्रुटि होने पर दण्ड की घोषणा करता है। 

Saturday, 5 March 2022

 एक लब्ध प्रतिष्ठ आदरणीय थे।  हम लोग बहुत से लोग उनके आजू बाजू रहते थे कुछ सीखने,  उनके बताए कुछ करने के लिये।  वहाँ अधिकांश उनके अपने ही थे।  अन्य आते थे जाते थे।  जब मैंने उनका शागिर्द बनने का निर्णय लिया तो मेरी आलोचना भी हुई।  उन्होंने भी कोई खास उत्साह नहीं दिखाया।  सीखना था,  तिरस्कार भी हो तो सही।  उनके यहाँ नियमित जाने वालों में उनसे केवल श्रद्धा वश मैं ही था। 

काल क्रम में एक दिन मैंने लगभग मूर्खों की तरह पूछ दिया " जो भी जैसे भी आप आज हैं,  यहां तक पहुँचने में कितना समय लगा।  

फूल हाऊस उनके जूनियर बैठे थे।  मेरे दुस्साहस पर सब की भृकुटी तन गई।  पूज्य वर ने हँसते हुए कहा "चालीस साल"।

मुर्ख की भाँति मैं बोल पड़ा- मैं इस दूरी को चार साल में तय कर लूँगा। 

बड़ी मेरी निन्दा हुई। 

समय बीतता गया।  लगभग 5 साल बाद मैंने अपनी ऑफिस खोली।  पूज्य नियमित तौर पर आते थे। 

सुबह मैं पूज्य के यहाँ नियमित तौर पर कुछ देर के लिये जाता था। 

एक दिन फूल हाऊस के सामने पूज्य ने आदेश दिया- " बैठो "।

पूज्य मेरे प्रति स्नेह रखते थे,  उदार थे।  वह tone  दिल दिमाग को छु गई। 

किसी अनिष्ट की आशंका से कांपते हुए धम्म से एक कुर्सी पर जड़ हो गया। 

फूल हाऊस। 

एक टक मुझे ही ताक रहा,  बेटा,  आज ये तो गया काम से। 

पूज्य ने कहा: कितना साल हुआ,?

मैंने कहा छह साल। 

बोले यू आर लेट बाई 2 years।  आपने मेरे बराबर होने के लिये चार साल ही कहे थे न! छह साल लगा दिये,  और फिर अपनी कुर्सी से खड़े हों मुझे एक कीमती कलम,  डायरि, और Cr PC की किताब दी।  अपने हाथ से किताब पर मेरा नाम लिखा और अपना दस्तखत किया।  

मेरी आँखों में अविश्वास,  केवल पानी,  गला रुद्ध गया। 

मैं खड़ा हो गया,  उनके चरणों में गिर सा गया,  बोला " सब आपकी कृपा  है "।

पूज्य एकाएक जोर से बोले " मेरी कृपा कैसे,  मैंने क्या किया,  ये जो 10/20 साल से आते बैठते रहे,  इन पर मेरी कृपा नहीं है क्या? नहीं,  आपने खुद अपनी यात्रा तय की है और मैं कह सकता हूँ कि आपने अपना कहा सत्य कर दिखा दिया। 

वह दिन मेरे जीवन का स्वर्णिम दिन था।  पूज्य मेरे पूज्य थे,  आज सशरीर नहीं हैं,  पर मेरे साथ हैं। 

पूज्य को अनन्त प्रणाम।