हथेलियों में चाँद,मुट्ठियों में चाँदनी, आँखों में आसमान बसा रखा है,
सपने हुए बेगाने,आवारा फिरते हरपल, कोई ठौर नहीं बचा है।
नींद भी इतमिनान से सोइ है, सपने वहाँ भी नही छिप सके
सारी दुनिया समेटे ये आँखें, मेरे सपनों के लिये पराई ह
सपने होते है प्यासे, सपनों को लगती है भूख-प्यास
सपने खोजते हैं अपने, छाँव, ठाँव,उनकी भी है एक आस।
तुम्हें क्या हो गया जो इन सपनों से डरने लगे हो,
पसीने वालि हथेली,लाल-लाल मुट्ठी , नींद ले उड़ा सपना
दिन रात तुमहें चलायेगा, जगायेगा, बस इतना ही ना
पर तब चाँद तुम्हारें कदमौं पे होगे, दुनिया मुट्ठी मैं