Thursday, 3 March 2016


Ramesh Rateria updated his status.
Take your own first step to reserve your space in the HISTORY IN MAKING---- never go unsung ,unlamented----- otherwise also invest enough with time before you leave ( MY COMMAND TO MY SELF)

Ramesh Rateria updated his status.
हथेलियों में चाँद,मुट्ठियों में चाँदनी, आँखों में आसमान बसा रखा है,
सपने हुए बेगाने,आवारा फिरते हरपल, कोई ठौर नहीं बचा है।
नींद भी इतमिनान से सोइ है, सपने वहाँ भी नही छिप सके
सारी दुनिया समेटे ये आँखें, मेरे सपनों के लिये पराई ह

सपने होते है प्यासे, सपनों को लगती है भूख-प्यास
सपने खोजते हैं अपने, छाँव, ठाँव,उनकी भी है एक आस।

तुम्हें क्या हो गया जो इन सपनों से डरने लगे हो,
पसीने वालि हथेली,लाल-लाल मुट्ठी , नींद ले उड़ा सपना
दिन रात तुमहें चलायेगा, जगायेगा, बस इतना ही ना
पर तब चाँद तुम्हारें कदमौं पे होगे, दुनिया मुट्ठी मैं
Ranjan Trivedy
दिन था 11/02/16 समय 9:46 मिनट... आप मेरे करीब थे.. लोग आपके बातो को सुन रहे थे वही दूसरी तरफ मैं आपके आँखों में एक छन के लिए देखा जहाँ एक आँखों में एक अबोध बालक दिख रहा था तो दूसरी आँखों में एकलव्य जैसी पैनी नजर वाला धनुधर ,,आप कैसे कर लेते हैं ये सब,
आप हर पल सब को प्रेरित करते रहते है।।।। अच्छा लगता हैं
जो आपके आँखों की भाषा समझ सकता हैं वो कुछ भी समझ सकता है।।। और आपने ही तो कहा था।।। एक दन ब्रम्होस की छमता धीरे धीरे समझ में आने लगेगी।।। आप ही है मेरे ब्रम्होस _()_
If judicially trained minds can come to diametrically opposite conclusions on the same set of facts it is obvious that expressions such as grossly offensive or menacing are so vague that there is no manageable standard by which a person can be said to have committed an offence or not to have committed an offence. ( Shreya Singhal  VA Union of India ( SC ) 24-3-15