Saturday, 29 September 2012

राहें हरदम टुकड़ों मे बँटी होती है जिनका अपना कोई ठौर नहीं होता, यह तो किटकिटाते दाँत, तनीं मुठ्ठियाँ, सूजे फफोंलेदार तलवे और थकती हुई पर थकी हुई नही - हथलियों का कमाल है जो पुलिया दर पुलिया बनाते,पहाड़ काटते टुकड़े दर टुकड़े रास्तों को जोड़ कर नदी-नालों-समंदर के पार तक पहुँचा डालते हैं-- और हम इन्हें मंजिल कहते हैं

No comments:

Post a Comment